कामवाली.. श्रमिक दिवस

 

चल सखी उस घर 

तुझे रोज़ी दिला दूँ।

मालकिन अच्छी बड़ी 

तुझको मिला दूँ॥


निकल जाए काम बस

एक ही मिनट में हाथ से

मालकिन से मत बताना

हम हैं किस कुल जात से

बस इन्हीं बातों में उसकी 

सास थोड़ी है ख़खेड़ी

चल सखी ये जाति-मज़हब

पर उसे गच्चा खिला दूँ॥


मालकिन है ठसक वाली

चढ़ के बतलाने लगेगी

दो मिनट में हाव सारा 

भाव भी तेरा पढ़ेगी

देखना चढ़ना नहीं हत्थे पे

उसके है हमें

चल सखी अब मोल करना

तोल पर तुझको सिखा दूँ॥


अब ज़माना लद रहा है

नित एजंसी खुल रही है

नाक के बल पीके पानी

सबको आया मिल रही है

है नहीं विश्वास तो 

बहुखंडियों का हाल देखो

चल सखी क़ीमत लगा

कर आज उनकी जड़ हिला दूँ॥


**जिज्ञासा सिंह**

12 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 03 मई 2023 को साझा की गयी है
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, जिज्ञासा दी।

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  3. यथार्थ प्रकट करती बहुत सुन्दर कृति ।

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  4. बहुत ही खूबसूरत सृजन प्रिय मैम

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  5. वाह!!!
    कमाल का यथार्थ लिखा है जिज्ञासा जी आपने
    निकल जाए काम बस

    एक ही मिनट में हाथ से

    मालकिन से मत बताना

    हम हैं किस कुल जात से

    बस इन्हीं बातों में उसकी

    सास थोड़ी है ख़खेड़ी

    चल सखी ये जाति-मज़हब

    पर उसे गच्चा खिला दूँ॥
    लाजवाब ।

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