धागे का अनुपम सूत ये

 


एक धागा लाल पीला

जब से राखी बन गया।

हाँ मेरे भैया के हाथों में

तभी से बँध गया॥


नेह में मोती पिरोकर

दीप में किरणें प्रभा की।

आरती वंदन करूँ मैं

नेह की थाली सजा ली॥

प्रेम के उपहार से मेरा

हृदय ही भर गया॥


भाई है विश्वास का 

आशा का विस्तृत आसमाँ॥

ज़िन्दगी की विषमता, 

ख़ुशियों का मेरे वो जहाँ॥

दे समय पर साथ वो हर 

दर्द दुख कम कर गया॥


मूल्य को लेकर चले

धागे का अनुपम सूत ये।

वक्त पर संबल बने

बहनों का रक्षा दूत ये॥

सूत का सम्बन्ध रिश्तों में

मिठाई भर गया॥


जिज्ञासा सिंह

11 टिप्‍पणियां:

  1. अनुपम रचना । रक्षा बंधन की शुभकामनाएँ ।

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  2. रक्षा बंधन पर अनगिनत शुभकामनाएँ

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  3. बहुत सुन्दर जिज्ञासा. वैसे अब तो रिश्ते भी ऑनलाइन रह गए हैं.

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  4. सुंदर भावपूर्ण रचना जिज्ञासा जी।
    सादर
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    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १ सितंबर २०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  5. भाई बहन के रिश्तों का बेहद भावपूर्ण चित्रण
    हार्दिक शुभकामनाएं

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  6. भाई है विश्वास का

    आशा का विस्तृत आसमाँ॥

    ज़िन्दगी की विषमता,

    ख़ुशियों का मेरे वो जहाँ॥

    दे समय पर साथ वो हर

    दर्द दुख कम कर गया॥
    बेहद भावपूर्ण एवं लाजवाब सृजन
    वाह!!!

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  7. दिगम्बर नासवा3 सितंबर 2023 को 7:52 am बजे

    बहुत सुंदर … भावपूर्ण रचना है …

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  8. बेहद भावपूर्ण रचना, जिज्ञासा दी।

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