देखो चमके दूर वह शिखर।
बरफ़ गिरी है उसपे भर-भर॥
बढ़ी पहाड़ों पर है सर्दी।
सेना पहने मोटी वर्दी॥
सरहद-सरहद घूम रही है।
माँ धरती को चूम रही है॥
भेड़ ओढ़कर कंबल बैठी।
बकरी घूमे ऐंठी-ऐंठी॥
याक मलंग जा रहा ऊपर।
बरफ़ चूमती है उसके खुर॥
मैदानों में मेरा घर है।
चलती सुर्रा हवा इधर है॥
टोपी मोज़ा पहने स्वेटर।
काँप रहा पूरा घर थर-थर॥
कट-कट-कट-कट दाँत कर रहे।
जब भी हम घर से निकल रहे॥
हवा शूल बन जड़ा रही है।
कँपना पल-पल बढ़ा रही है॥
करना क्या है सोच रहे हम?
आता कोहरा देख डरे हम॥
ऐसे में बस दिखे रज़ाई।
मम्मी ने आवाज़ लगाई॥
अंदर आओ आग जली है।
गजक साथ में मूँगफली हैं॥
जिज्ञासा सिंह
बहुत ही सराहनीय रचना प्रिय जिज्ञासा जी।
जवाब देंहटाएंबाल साहित्य बच्चों के मानसिक मानसिक स्वास्थ्य और विकास के लिए उनमें नैतिक शिक्षा के बीज बोने के लिए अत्यंत आवश्यक है।
सस्नेह।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार १२ दिसम्बर २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बाल चौपाई को "पांच लिंकों का आनंद" में चयन करने केलिए बहुत आभार आपका सखी। मेरी हार्दिक शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक आभार!
हटाएंसुंदर गेय बाल कविता
जवाब देंहटाएंबहुत आभार दीदी।
हटाएंबड़ी प्यारी बाल कविता रची है जिज्ञासा जी आपने
जवाब देंहटाएंआपकी प्रतिक्रिया पढ़कर मन आनंदित हो जाता है। आभार।
हटाएंवाह! सखी जिज्ञासा जी ,बहुत खूबसूरत बाल कविता ।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार सखी
हटाएंमज़ेदार बाल-कविता ! इस कविता को ज़ायकेदार भी बनाने के लिए मूंगफली के साथ गज़क भी जोड़ दो !
जवाब देंहटाएंजी जोड़ दिया है 👏😊
हटाएंसुंदर बाल कविता मौसम के अनुरूप सरस बाल मन सी सहज सरल।
जवाब देंहटाएंआपकी प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार!
जवाब देंहटाएंऐसे में बस दिखे रज़ाई।
जवाब देंहटाएंमम्मी ने आवाज़ लगाई॥
अंदर आओ आग जली है।
गजक साथ में मूँगफली हैं॥
वाह-वाह,क्या बात है..... आपने तो बचपन की याद दिला दी...बहुत सुंदर सृजन जिज्ञासा जी ,सादर नमन आपको
आपको बहुत याद कर रही थी आपकी टिप्पणी मन को मुदित कर गई सखी। बहुत आभार आपका।
हटाएंपहाड़ी सर्दी का एक केनवास सा आँखों के सामने से गुज़र गया ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना ...
रचना को विस्तार देती सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार।
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