जो कल ही ब्याह के आयी थी
उसके क्रंदन का प्रलाप सुनो
इस रुदन की पीड़ा से हृदय
जाता है थर थर कांप सुनो
है चीख पुकार सी मची हुई
घनघोर हुआ आलाप सुनो
मेहंदी औ महावर धो डाला
छूटी न लालरी छाप सुनो
घर, देहरी औ दरवाजे पर
सन्नाटा और संताप सुनो
तोरण की लड़ियां टूट गई
मैहर की धूमिल थाप सुनो
पायल के घुँघरू बिखर गए
आती न कोई पदचाप सुनो
प्रभु के आगे सिर पटक पटक
दे रही दुहाई जाप सुनो
हे ईश्वर ! मेरे किन कर्मों का
ऐसा दिया है शाप सुनो
ये जीवन की शुरुआत ही थी
फिर मुझसे हुआ क्या पाप सुनो ?
**जिज्ञासा सिंह**
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जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी..!
जवाब देंहटाएंनमन है वीर शहीदों को। वीरांगनाओ के त्याग को कोई भूल नहीं सकता..!
ब्लॉग पर आपके स्नेह का हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ सादर नमन..
हटाएंबहुत मर्मस्पर्शी रचना।
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी, नमस्कार ! आपकी उत्साहवर्धक प्रशंसा को हृदय से नमन करती हूँ..सादर नमन..
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०५-०२-२०२१) को 'स्वागत करो नव बसंत को' (चर्चा अंक- ३९६९) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
अनीता सैनी
प्रिय अनीता जी, मेरी रचना को चर्चा अंक में शामिल करने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार..ब्लॉग पर आपके स्नेह की आभारी हूँ..सादर अभिवादन..
जवाब देंहटाएंजो कल ही ब्याह के आयी थी
जवाब देंहटाएंउसके क्रंदन का प्रलाप सुनो
इस रुदन की पीड़ा से हृदय
जाता है थर थर कांप सुनो
सच, मन को छू लिया आपकी रचना ने 🌹🙏🌹
बहुत बहुत आभार शरद जी..सादर नमन..
हटाएंहृदयस्पर्शी,सत-सत नमन वीर शहीद को और उसके परिजनों को भी
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार कामिनी जी, सादर नमन..
हटाएंप्रभु के आगे सिर पटक पटक
जवाब देंहटाएंदे रही दुहाई जाप सुनो
हे ईश्वर ! मेरे किन कर्मों का
ऐसा दिया है शाप सुनो
ये जीवन की शुरुआत ही थी
फिर मुझसे हुआ क्या पाप सुनो ?
दिल को छूती रचना।
बहुत बहुत आभार..सादर नमन..
हटाएंहृदयाघाती विलाप .. नियति के क्रूर चक्र में पिसने को विवश ... आह !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार अमृता जी.. सादर नमन..
जवाब देंहटाएंऐसी हृदयस्पर्शी रचना को पढ़कर मन अशांत हो जाता है। जिस पर बीतती है वो कैसे अपने आप को संभालता होगा?
जवाब देंहटाएंजी, बिल्कुल सही कहा आपने वीरेन्द्र जी, ब्लॉग पर आपके स्नेह की आभारी हूँ..सादर अभिवादन..
हटाएंओह दुरांत वेदना के क्षण रच दिए आपने जिज्ञासा जी।
जवाब देंहटाएंलेखनी भी रो पड़ी होगी कलम से यही नही आँसू बहे होंगे।
दारुण।
निशब्द।
सच्चाई यही है..कुसुम जी, आप जैसे विज्ञ अगर मन के भावों की व्याख्या इन शब्दों से करें तो लेखन की गरिमा बढ़ जाती है..आपको मेरा हार्दिक आभार एवं वंदन..
हटाएंहृदय को करूणा से विगलित कर देने वाले क्षणों को साकार करती मर्मस्पर्शी रचना ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय मीना जी, आप की उत्साहवर्धक टिप्पणी हमेशा प्रेरणा देती है..आपकी स्नेह सिक्त प्रतिक्रिया से ब्लॉग की शोभा बढ़ जाती है..सादर नमन..
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंप्रिय जिज्ञासा जी , विरह विगलित आत्मा से फूटा ये वेदना का अनंत क्रंदन शब्दों में कहाँ समाता है ? एक अपार संभावनाओं से भरे निर्दोष युवा सैनिक का असमय काल के गाल में समाना किसे विचलित नहीं करेगा | पर पत्नी के लिए पति पूरी दुनिया होता है जिसके ना रहने से पूरी दुनिया ही वीरान हो जाती है | दिवंगत शहीद की युवा पत्नी का ये विलाप मन को वेदना से भर गया | बहुत -बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति है | आँखें नम हो गयीं| समस्त शहीदों को सादर नमन |
जवाब देंहटाएंआपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया रचना को सार्थक कर गई प्रिय सखी..आपके स्नेह के लिए ईश्वर की आभारी हूँ..स्नेह बनाए रखें..सादर नमन..
हटाएंएक अमर रहने वाली रचना | बहुत बहुत सुन्दर , सराहनीय
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय, आपके अवलोकन से कविता की गरिमा बढ़ गई और प्रशंसा से मेरे सृजन शक्ति..अपना स्नेह बनाए रखें सादर नमन..
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