गणतंत्र से प्रतिघात


निःशब्द कर गया दृश्य मुझे गणतंत्र तुम्हारा
ऐसी क्या मजबूरी जो तू इनसे हारा  ?

दृश्यों में वो दृश्य, मुझे विचलित कर जाते 
जिनमें तू लगता निरीह मुझको बेचारा 

हाय करूँ क्या ? हाथ बंधे मेरे भी तुझसे 
वर्ना मर मिट जाती, चेहरा नहीं दिखाती मैं दोबारा

लेती बाँध कफ़न अपने मस्तक पर प्यारे 
कर देती छलनी मैं छाती जो कर देता समुख मेरे तुझको यूँ कारा 

मन की पीड़ा किसको अब बतलाऊँ कैसे ?
जब अपनों ने बीच राह में पटक के मारा 

वो दिन और आज का दिन तो देखो 
जब हमने सर्वस्व था अपना तुझपे वारा 

कैसे तृष्णा हावी है तुमपे भी इनकी 
कैसे नोच रहे औ तुमको कैसे है ललकारा ?

कौन कहेगा आज अन्न के दाता इनको 
लगते तो आतंकी दहशतगर्द और हत्यारा 

ये तो चाह रहे हैं आग लगे भारत में 
इनकी गंगा बहें और इनकी हो धारा 

बहुत झेलते रहे कुटिल चालों को इनकी 
भस्म किया अनुराग प्रीति का भाईचारा 

करते ये प्रतिघात राष्ट्र की छवि हो धूमिल 
संविधान और लोकतंत्र को है संहारा    

अब तो अपनी सुलभ सरस आदत को बदलो 
वर्ना जग में लगेगा अपयश, बदनामी का नारा 

करना है इनको समाज के आगे नंगा 
जिनकी करतूतों से रोया अपना संविधान, जो जान से प्यारा 

आज तुम्हारा संबल गर मिल जाए मुझको 
सच कहती हूँ होगा पूरा विश्व हमारा 

ऐसी ताकत नहीं जो कोई रोक सकेगी 
ये होंगे कदमों में, ऊँचा मैं रखूंगी भाल तुम्हारा

अब हमको एक सूत्र में बंध कर निश्चय करना होगा 
नहीं बची है राह न कोई अब है चारा 

**जिज्ञासा सिंह**

13 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 29-01-2021) को
    "जन-जन के उन्नायक"(चर्चा अंक- 3961)
    पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    धन्यवाद.

    "मीना भारद्वाज"

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  2. आदरणीय मीना जी, नमस्कार ! मेरी रचना को चर्चा अंक में शामिल करने के लिए आपका हृदय से अभिनंदन करती हूँ..सादर नमन..

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  3. ओंकार जी,बहुत बहुत आभार आपका..सादर नमन..

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  4. जिज्ञासा दी, गणतंत्र के मनोभावों को बहुत ही खूबसूरती से व्यक्त किया है,आपने।

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  5. हर हृदय के चित्कार को अत्यंत प्रभावी ढंग से कहा है । दुर्भाग्यवश हम सभी गवाह हुए इस प्रतिघात के ।

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    1. मैं आपसे सहमत हूँ अमृता जी, आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी का हृदय से स्वागत करती हूँ..सादर नमन..

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  6. शांतनु जी आपकी सराहनीय प्रतिक्रिया का आदर करते हुए आभार प्रकट करती हूँ..सादर नमन..

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  7. उस दिन के तांडव से आप बहुत व्यथित हैं। आपकी रचनात्मकता लाजवाब है। इस सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति के लिए आपको बधाई। सादर।

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  8. बहुत बहुत आभार वीरेन्द्र जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को नमन करती हूँ..सादर..

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  9. गणतंत्र के मनोभावों को बहुत ही खूबसूरती से व्यक्त किया है,आपने।

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