समय उड़ चला
हाथ हिला हिला
ले रहा विदा
अलविदा
जैसे ही कहा मैंने
मुस्कुरा दिया उसने
मुझको चिढ़ाता सा
अजब गजब मुँह बनाता सा
दिखता रहा वो
दूर से जाने, क्या क्या कहता रहा वो
पल भर में घुमा गया चक्र
वक्र
सी दिखी छवि
मेरी अवि
मुझे कर गई तटस्थ
चित्त शांत आश्वस्त
कलरव करते मेघ उड़े
उमड़े घुमड़े
कह गए मन्द मन्द
स्वच्छंद
मेरे सहगामी
विचरण के स्वामी
मैं तुम और समय
नहीं चलते असमय
अपनी गति से चले जा रहे
हवाओं को बहा रहे
अपने ही साथ
तुम रह गए अनाथ
हाथ मसलते रहे
कहते रहे
ठहरो मैं आ रहा हूँ
अपनी सुना रहा हूँ
न तुम सुना पाये न मैं रुका
झुका झुका सा मेघ थका थका
उसे न बूँद मिली जो बरसती
मेरी भी आँखें तरसती
रह गईं उसके लिए
जिसके आगोश में अब तक जिए
जो न रुका है न रुकेगा
न थका है न थकेगा
वह चलायमान था चलता रहेगा
न तुम्हारा था न मेरा है न किसी का बनेगा
**जिज्ञासा सिंह**
चित्र साभार गूगल
बिलकुल सच कहा जिज्ञासा जी आपने । सराहनीय अभिव्यक्ति है यह आपकी ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद जितेन्द्र जी, उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए आपका हृदय से आभार..
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (10-02-2021) को "बढ़ो प्रणय की राह" (चर्चा अंक- 3973) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
--
आदरणीय शास्त्री जी, नमस्कार ! मेरी रचना को चर्चा अंक में शामिल करने के लिए हृदय से आपकी आभारी हूँ..ब्लॉग पर निरंतर मिलते आपके स्नेह का हार्दिक अभिनंदन एवं स्वागत करती हूँ..शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह..
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 09 फरवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआदरणीय दिग्विजय अग्रवाल जी, नमस्कार ! मेरी रचना को "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" में शामिल करने के लिए हृदय से आपकी आभारी हूँ..ब्लॉग पर निरंतर आपके स्नेह का हार्दिक अभिनंदन एवं स्वागत करती हूँ..शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह..
हटाएंजिसके आगोश में अब तक जिए
जवाब देंहटाएंजो न रुका है न रुकेगा
न थका है न थकेगा
वह चलायमान था चलता रहेगा
न तुम्हारा था न मेरा है न किसी का बनेगा
बहुत सुंदर..
सादर प्रणाम
प्रिय दोस्त, आपकी प्रशंसा को नमन है..सादर शुभकामनायें..
जवाब देंहटाएंनिर्बाध गति से बहती हुई भावाभिव्यक्ति ... कलकल करती हुई । समय से होड़ ....
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका अमृता जी, प्रशंसा से रचना का मान बढ़ गया..सादर..
हटाएंबहुत अच्छी रचना है।
जवाब देंहटाएंआपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को नमन है..आपको सादर नमन..
हटाएंसमय तो बीतता ही है..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन..
सादर नमन..
बहुत बहुत धन्यवाद आपको..प्रशंसनीय प्रतिक्रिया का आदर करती हूँ..सादर नमन..
हटाएंअविरल प्रवाह की सुन्दर भावपूर्ण रचना मुग्ध करती है।
जवाब देंहटाएंशांतनु जी आपका बहुत-बहुत आभार..आपकी प्रशंसा को नमन है..सादर अभिवादन..
हटाएंबहुत ही सुंदर प्रभावशाली रचना। ।।।।
जवाब देंहटाएंआपकी प्रशंसा का ब्लॉग पर सदैव स्वागत है आपको मेरा हार्दिक नमन..
हटाएंन तुम्हारा था न मेरा है न किसी का बनेगा
जवाब देंहटाएंवाहः
सन्त आ गया अब वसन्त
आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया का दिल से सम्मान करती हूँ..आपको मेरा सादर अभिवादन..
हटाएंकलरव करते मेघ उड़े
जवाब देंहटाएंउमड़े घुमड़े
कह गए मन्द मन्द
स्वच्छंद
मेरे सहगामी
विचरण के स्वामी
मैं तुम और समय
नहीं चलते असमय
अपनी गति से चले जा रहे
हवाओं को बहा रहे
अपने ही साथ
सुंदर ...
विकास जी आपका बहुत-बहुत आभार..सादर नमन..
हटाएंवह चलायमान था, चलता रहेगा सदा। आपने सही कहा। बहुत सुंदर सृजन। यथार्थ को समेटे अभिव्यक्ति के लिए आपको बधाई। शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत-बहुत आभार वीरेन्द्र जी,..सादर नमन..
हटाएंबहुत सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार मनोज जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को नमन है..
जवाब देंहटाएंवाह!बहुत ही सुंदर सृजन दी।
जवाब देंहटाएंसादर
अनीता जी, बहुत बहुत आभार..सादर नमन..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन, जिज्ञासा दी।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार ज्योति जी, सादर नमन..
हटाएंशाश्वत भावों को समेटे सुंदर शब्द चित्र जिज्ञासा जी बहुत सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंसस्नेह।
कुसुम जी आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को नमन है..बहुत आभार..
जवाब देंहटाएंबहुत सराहनीय सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय..सादर नमन..
जवाब देंहटाएं