हवाई उड़ान और मैं

हवाओं ने मुझे फिर आजमाया 
बाँह पकड़ी और अपने संग उड़ाया 

ले चलीं वो आसमाँ के पार मुझको 
चाँद और तारों ने स्वागत गीत गाया

देखकर उनके जहाँ की आबे रौनक़ 
कशमकश में पड़ गई दिल हिचकिचाया 

सोचती हूँ मैं कहाँ ये आ गई
इतना उड़ने का नहीं मुझमे समाया 

गर हवा ने हाथ छोड़ा बीच में तो 
गिर के जाऊँगी कहाँ ? जब समझ आया 

देर, काफी देर थी अब हो चुकी 
करूँ क्या ये सोचकर मन डगमगाया 

था किसी ने एक दिन मुझसे कहा 
ये हवाएँ छोड़ देतीं अपना साया 

इस तरह उड़कर पहुँचते जो शिखर पे 
है हवा ने भी उन्हें एक दिन गिराया 

कब औ किसका हाथ ये पकड़ें औ उड़ लें 
आज तक मेरी समझ न राज़ आया 

इस लिए चल चल के उड़ना सीखना 
वरना गिर के कितनों ने खुद को गंवाया 

अपनी काबिलियत को धीरे से परख कर 
जो हैं चढ़ते सीढियों का पहला पाया 

पा ही जाते मंज़िलों का रास्ता वो 
धैर्य औ संयम को जिसने पथ बनाया 

**जिज्ञासा सिंह**

26 टिप्‍पणियां:

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    1. बहुत बहुत आभार शिवम जी, प्रशंसनीय टिप्पणी के लिए आपका शुक्रिया..

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन  में" आज रविवार 07 फरवरी को साझा की गई है.........  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. आदरणीय यशोदा दी, नमस्कार! मेरी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में " शामिल करने के लिए आपका हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ..ब्लॉग पर आपके निरंतर मिलते स्नेह की आभारी हूँ..सादर शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह..

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  3. 'अपनी काबिलियत को धीरे से परख कर
    जो हैं चढ़ते सीढियों का पहला पाया
    पा ही जाते मंज़िलों का रास्ता वो
    धैर्य औ संयम को जिसने पथ बनाया'


    सच बात कही आपने।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद यशवन्त जी, उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए आपका हृदय से अभिवंदन करती हूँ..

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  4. पा ही जाते मंज़िलों का रास्ता वो
    धैर्य औ संयम को जिसने पथ बनाया ....
    प्रेरणादायक बेहतरीन रचना हेतु साधुवाद आदरणीया जिज्ञासा जी। आपके विशिष्ट व विविधतापूर्ण लेखन को नमन।

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    1. पुरुषोत्तम जी, आपकी उत्साहित करती प्रशंसा बहुत ही प्रेरणादायक है और नित नए सृजन का मार्ग प्रशस्त करने की प्रेरणा देगी..सादर..

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  5. मंजिल चाहे कैसी भी हो पहुँचने के लिए एक पग तो बढ़ाना ही पड़ता है ! संकल्प को दृढ करना ही होता है !

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  6. बहुत बहुत धन्यवाद गगन जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को नमन है..सादर अभिवादन..

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    1. आदरणीय जोशी जी,आपकी प्रशंसनीय टिप्पणी को नमन है सादर अभिवादन..

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  8. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 08 फ़रवरी 2021 को 'पश्चिम के दिन-वार' (चर्चा अंक- 3971) पर भी होगी।--
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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    1. आदरणीय रवीन्द्र जी,नमस्कार ! मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए आपका हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ..सादर शुभकामनाएँ..जिज्ञासा सिंह..

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  9. उत्तर
    1. आदरणीय शास्त्री जी, नमस्कार ! आपकी उत्साहवर्धक प्रशंसा का स्वागत करती हूँ..सादर नमन ..

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  10. वाह!गज़ब का सृजन दी प्रत्येक बंद लाजवाब।
    सादर

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    1. प्रिय अनीता जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ..सादर सप्रेम जिज्ञासा सिंह..

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  11. बहुत बहुत धन्यवाद शांतनु जी, सादर नमन..

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  12. सुन्दर ग़ज़ल रची आपने जिज्ञासा जी ।

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  13. बहुत-बहुत धन्यवाद..प्रशंसा के लिए आभारी हूँ..

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  14. इस लिए चल चल के उड़ना सीखना
    वरना गिर के कितनों ने खुद को गंवाया
    प्रिय जिज्ञासा जी , गिर -गिर के नहीं संभल कर चलना ही सफलता और शिखर की सीधी हाई | सारगर्भित भावों से भरी रचना जिसके प्रेरक भाव उम्दा हैं |

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  15. बहुत आभार प्रिय रेणु, आपकी प्रतिक्रिया हमेशा प्रेरणा देती..आपके स्नेह की आभारी हूँ..

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  16. आदरणीय आलोक सिन्हा जी, ब्लॉग पर आपके निरंतर मिलते स्नेह की आभारी हूँ..सादर नमन..

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