आज कुछ कहने को हैं, रुसवाईयां हमारी ।।
वे जब कहते हैं
हम सुनते हैं
सुन सुन के
उनके बन के
रहते भी हैं
उनकी सहते भी हैं
पर जाने क्यूँ
हमें यूँ
जीने नहीं देती हैं
धोखा देती हैं,
निश्चल परछाइयाँ हमारी ।।
जीवन जीते हैं
कड़वे घूँट पीते हैं
घुटती हुई साँसों
बिखरे हुए अहसासों
को जोड़ तोड़ के
अपनी तरफ़ मोड़ के
अपना बनाते हैं
मन की अलमारी में सजाते हैं
सजते ही
कभी कभी
बिखर जाती हैं पल भर में,
वर्षों सहेजी, संजोयी ख़ुशियाँ हमारी ।।
क्या है ये ?
कैसा सिलसिला ये ?
नारी मन
ये घर्षण
सहते सहते
बिछुड़ते रमते
आस में जीते
आँसुओं को पीते
बिता देता है सदियाँ
पर बीतती नहीं वो घड़ियाँ
छीन लेतीं जो क्षण भर में, दुनियाँ हमारी ।।
ये दुनिया भी क्या है ?
शायद एक धोखा है
जो देते हम स्वयं को
अपने परम को
जिसे अपना बनाते हैं
उसमें डूब जाते हैं
दिखता नहीं अस्तित्व
अपना ही व्यक्तित्व
कर देते तार तार
खो देते अधिकार
ओढ़ते बिछाते गिनाते,
समर्पण की मजबूरियाँ हमारी ।।
क्यों ?
आखिर क्यों ?
नारी हैं हम !!
या इसी के अधिकारी हैं हम
तुम तो कहते हो
कहते ही रहते हो
कि तुम्हीं से सबकुछ है
क्या ये सच है ?
यदि हाँ
तो हैं कहाँ
तुम्हारी, केवल मेरे लिए,
तराशी, बनायी स्मृतियाँ हमारी ।।
इतना मत बनाओ
मत सजाओ
हमें गुड़ियों के जैसे
सजे धजे तुम्हारी परछाईं से
कब तक चिपकी रहूँगी
अपनी कब सुनूँगी
कुछ कह रहा है आज हिय
जरा सुनो मेरे प्रिय
मन की बात
मेरे ज़ज्बात
बहुत कुछ कहने को तुमसे,
व्याकुल हैं अनुभूतियाँ हमारी ।।
काश कि तुम
बनते हम कदम
देते आत्मबल
बढ़ाते मनोबल
मैं भी कदम से कदम मिलाती
चलती जाती
तुम्हारी परछाईयों से इतर
इधर उधर
नहीं भटकती
संभाल लेती
खुद को, तुम्हारे न होने पर भी,
संबल बनतीं निशानियाँ तुम्हारी ।।
**जिज्ञासा सिंह**
चित्र साभार गूगल
आपकी लिखी बेहद मर्मस्पर्शी रचना प्रिय जिज्ञासा जी।
जवाब देंहटाएंआपकी रचना को समर्पित है मेरी लिखी कुछ पंक्तियाँ-
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आदर्श और नियमोंं के जंजीरों में
पंख बाँधे गये घर की चौखट से
अपनों की खुशियों को रोपती हूँ
हर दिन तलाशती अपना आधार
मैं भोग्या वस्तु नही, खिलौना नहींं
मैं मुस्काती,धड़कती जीवन श्वाास हूँ
साँस लेने दो,उड़ने को नभ दो मुझे
नारी हूँ मैं चाहती जीने का सम आधार।
#श्वेता
स्नेहिल शुभकामनाएं।
प्यार भरा अभनंदन है आपका और आपकी रचित अंतर्मन को छूती इन शानदार,जानदार पंक्तियों का..प्रिय सखी आपको साल के हर दिन , हर पल की हार्दिक शुभकामनाएं..सादर नमन..
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 08 मार्च 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंप्रिय दिव्य जी सबसे पहले आपको महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं एवम बधाई..मेरी रचना को "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" शमिल करने के लिए आपका बहुत आभार एवम नमन ..
हटाएंजी जरूर, आपका बहुत बहुत आभार..सादर नमन..
हटाएंबहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंअन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
आदरणीय शास्त्री जी, नमस्कार !आपका बहुत बहुत आभार ..आपकी प्रशंसा को हृदय से नमन करती हूं सादर ..
हटाएंआपकी लिखी रचना आज सोमवार 8 मार्च 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी सादर आमंत्रित हैं आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंकाश कि तुम
जवाब देंहटाएंबनते हम कदम
देते आत्मबल
बढ़ाते मनोबल
मैं भी कदम से कदम मिलाती
चलती जाती
तुम्हारी परछाईयों से इतर
इधर उधर
नहीं भटकती
संभाल लेती
खुद को, तुम्हारे न होने पर भी,
संबल बनतीं निशानियाँ तुम्हारी ।।
बहुत खूब!!, हमारा उदेश्य बस यही,हमारी खवाहिश बस इतनी सी ही।
शानदार सृजन ,महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं जिज्ञासा जी
बहुत बहुत आभार आपका प्रिय कामिनी जी, इतनी सारगर्भित और सुंदर टिप्पणी के लिए.. महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं एवम बधाई..
हटाएंसुन्दर,सार्थक और समयोचित सृजन। आपको अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंवीरेन्द्र जी आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक आभार व्यक्त करती हूं सादर नमन एवम शुभकामनाएं..
हटाएंचिंतनशील सामयिक रचना
जवाब देंहटाएंपुरातन परिपाटी छोड़ अपनी पहचान जब खुद नारी बनाएगी तभी उसका एक दिवस नहीं हर दिवस होगा
बिलकुल सही कहा आपने.. आपकी सार्थक प्रतिक्रिया सदैव मनोबल बढ़ाएगी..आपको मेरा नमन .. महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं एवम बधाई..
जवाब देंहटाएंअंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं जिज्ञासा जी,
जवाब देंहटाएंबेहद सार्थक और चिंतनशील सृजन। हर दिवस को अपना दिवस की कवायद में हर महिला को संबल प्रदान करता है उसके अपनो का साथ। हम सब एक दूसरे के लिए अपने ही तो हैं जो भावनाओं को शब्दों के माध्यम से बांट लेते हैं एक दूसरे के साथ।
सुंदर और गहनतम भावनाओं में लिपटी रचना।
सादर
आपका बहुत बहुत आभार प्रकट करती हूं अपर्णा जी ,आपकी व्याख्यात्मक प्रशंसा से अभिभूत हूं..सच कहा है आपने "हम सब एक दूसरे के लिए अपने ही तो हैं जो भावनाओं को शब्दों के माध्यम से बांट लेते हैं एक दूसरे के साथ। सादर नमन एवम बधाई..
हटाएंकाश कि तुम
जवाब देंहटाएंबनते हम कदम
देते आत्मबल
बढ़ाते मनोबल
मैं भी कदम से कदम मिलाती
चलती जाती
तुम्हारी परछाईयों से इतर
इधर उधर
नहीं भटकती
संभाल लेती
खुद को, तुम्हारे न होने पर भी,
संबल बनतीं निशानियाँ तुम्हारी ।।
नारी मन की व्यथा को बहुत ही खूबसूरती से व्यक्त किया आपने, जिज्ञासा दी।
बहुत बहुत आभार ज्योति जी आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हृदय से लगा लिया है और आपका हार्दिक आभार प्रकट करती हूं..सादर नमन एवम महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं एवम बधाई..
जवाब देंहटाएंप्रिय जिज्ञासा जी , नारी मन की जटिलताओं के साथ उसकी भावनात्मक कमजोरियों को इंगित करती रचना बहुत मर्मस्पर्शी है | आपका लेखन का ये जुदा अंदाज अपने आप में बहुत विशेष है | महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई आपको |
जवाब देंहटाएंप्रिय रेणु जी आपकी प्रशंसा भरी टिप्पणी को हृदय से लगा लिया है एवम इतनी सुंदर प्रेरणादायी प्रशंसा के लिए आभारी हूं ब्लॉग पर आपकी विशेष टिप्पणी सदैव प्रोत्साहित करेगी, इसी अभिलाषा में जिज्ञासा सिंह..
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता रची आपने जिज्ञासा जी । अभिभूत हूँ इसे पढ़कर ।
जवाब देंहटाएंजितेन्द्र जी, मेरे हर ब्लॉग पर आपकी टिप्पणी से मन प्रसन्नता से भर गया..आपको सादर नमन..
जवाब देंहटाएंनारी के मन की भावना को ज्यों का त्यों उतार दिया है शब्दों में ।
जवाब देंहटाएंसबल होते हुए भी बहुत कुछ सहती है ।सुंदर रचना ।
आदरणीय दीदी, सच कहूं, आपकी अनुपम टिप्पणी का इंतजार था, आखिकार पूरा हुआ.आपकी प्रशंसा को हृदय से नमन करती हूं..सादर अभिवादन..
हटाएंइधर उधर
जवाब देंहटाएंनहीं भटकती
संभाल लेती
खुद को, तुम्हारे न होने पर भी,
संबल बनतीं निशानियाँ तुम्हारी ।।
बहुत खूब...महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं जिज्ञासा जी
आपका बहुत बहुत आभार व्यक्त करती हूं, ब्लॉग पर आपकी विशेष टिप्पणी सदैव प्रेरणा देगी ,सादर नमन..
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर प्रशंसनीय ।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार एवम नमन.. ब्लॉग पर आपकी विशेष टिप्पणी सदैव प्रोत्साहित करती है..
जवाब देंहटाएं