ज़माना बदल रहा है(नारी स्वावलंबन -गंवई संवाद)

जुग बदल गया है 
हमरा जमाना निकल गया है
पहले की बात और थी अबकी और है
अब अनपढ़न को नाहीं कहूं ठौर है 

बड़की को पढ़ाएंगे
छोटकी तो, नौकरी वाली ही लायेंगे
बड़ी अम्मा ने अपनी बहुओं के बारे में जब मुझे बताया 
तो मैंने उन्हें ये भी कहता हुआ पाया 

कि कम उम्र में हो गया था बड़े बेटे का ब्याह
मैं नहीं ले पाई थी बहू बेटे के मन की चाह 
आज जब सबकी बहुरिया कमाती हैं
तो हमरी बड़ी बहू पछताती है

कि काश हम भी कुछ बढ़िया पढ़े होते
तो नौकरी जरूर करे होते
यही सोचकर हम, अब से उसे पढ़ाएंगे 
और नौकरी भी करवाएंगे

नौकरी न मिली तो करा देंगे व्यापार
धीरे धीरे बढ़ जाता है रोजगार
और जब घर में हर कोई कमाता है
चार पैसा आता है

तब नहीं होती फालतू खुराफात
देखो बिटिया ! जब खाली होती है औरत जात
तो इधर उधर बैठती है बतियाती है
अपना समय गप्प मारने में बिताती है

और घर में मारती है ताने
हम बड़ों को देती है उलाहने
इसलिए बिटिया 
हम तो अपनी दोनो बहुरिया 

से घर और बाहर दोनों काम करवाएंगे
घर में खाली नहीं बैठाएंगे
कमाएंगी शौक पूरा करेंगी
हमें भी थोड़ा बहुत छिड़क देंगी

हम भी मस्त, बहुरिया भी मस्त
हमें चाहे कोई कुछ कहे, हम नहीं होंगे पस्त
अपना परिवार सुखी तो सब सुखी
अपना घर दुखी तो दुनिया दुखी

बड़ी अम्मा का सिद्धांत सुन, मैं मन ही मन मुसकाई
अपना बैग उठाया और घर चली आई
मन कह रहा है कि कहीं कुछ ठहराव है 
स्त्री जीवन में आ रहा बड़ा बदलाव है

अगर बड़ी अम्मा कह रही है, ये बातें
तो बीतेंगी हमारी भी सुहानी रातें
दिन फिरेंगे जरूर,और दिन फिर, भी रहा है
सच जमाना धीरे ही सही,पर बदल रहा है

 *जिज्ञासा सिंह**
चित्र साभार गूगल

35 टिप्‍पणियां:

  1. क्या बात है जिज्ञासा जी ! बहुत अच्छी कविता रची आपने । कविता एवं कहानी, दोनों ही का आनन्द एक ही रचना के पारायण से प्राप्त हो गया । और बात ठीक भी है । ज़माना बदला है तो सोच भी बदली है ।

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    1. आपकी सुंदर प्रतिक्रिया खुशी दे गई,आपको मेरा नमन ।

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  2. वाकई जमाना बदल रहा है और अपने उसकी नब्ज पकड़ ली है

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    1. इतनी महत्वपूर्ण टिप्पणी के लिए आपको हृदय से नमन है,आपको मेरा सादर अभिवादन ।

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  3. बहुत सुन्दर। शिक्षा की अलख जगाती सार्थक अभिव्यक्ति।

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  4. आपको हार्दिक आभार और नमन,आपकी सार्थक प्रशंसा हमेशा मनोबल बढ़ाने में सहायक होती है, आपको मेरा सादर प्रणाम ।

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  5. बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना । ।

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    1. आदरणीय आलोक सिन्हा जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन एवम वंदन ।

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  6. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (23-3-21) को "सीमित है संसार में, पानी का भण्डार" (चर्चा अंक 4014) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    कामिनी सिन्हा

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    1. प्रिय कामिनी जी,नमस्कार !
      मेरी रचना को चर्चा अंक में शामिल करने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद एवम अभिनंदन करती हूं। सादर शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह ।

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  7. आपका बहुत आभार,शुभम जी, आपकी प्रशंसा को सादर नमन ।

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  8. अम्मा का सिद्धांत और आपकी मुस्कान
    कह गया कि अब बदल रहा वक़्त
    नारी समझ रही नारी कि व्यथा
    बनाना चाह रही अब उसे सख्त ...

    खूब बढ़िया लिखा जिज्ञासा ... अम्मा जैसी सोच कुछ लोगों की तो हो ...

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    1. जी,आपको अच्छी लगी ये कविता, तो लेखन को मैंने सफल मान लिया , आपके स्नेह की अभिलाषा में जिज्ञासा ।

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    2. हम भी मस्त, बहुरिया भी मस्त
      हमें चाहे कोई कुछ कहे, हम नहीं होंगे पस्त
      अपना परिवार सुखी तो सब सुखी
      अपना घर दुखी तो दुनिया दुखी

      बड़ी अम्मा का सिद्धांत सुन, मैं मन ही मन मुसकाई
      अपना बैग उठाया और घर चली आई
      मन कह रहा है कि कहीं कुछ ठहराव है
      स्त्री जीवन में आ रहा बड़ा बदलाव है
      वाह बहुत बढ़िया यही सोच की जरूरत, एक सुंदर समाज की तस्वीर खींची गई है इस रचना में, कम से कम पढ़कर ही सबकी अम्मा जैसी सोच हों जाये, इसी आशा के साथ तुम्हे ढेरों बधाई हो इस बेहतरीन रचना के लिए, शुभ प्रभात

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    3. जी, बहुत बहुत आभार आदरणीया दीदी,आपकी उत्साहित करती प्रशंसा नव सृजन का मार्ग प्रशस्त करती है, सदैव स्नेह की अभिलाषा में जिज्ञासा सिंह ।

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  9. आपका बहुत बहुत आभार,मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत करती हूं, सादर अभिवादन ।

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  10. क्या बात है! बहुत सुंदर। अम्मा के विचारों में कोई खोट नहीं है। जमाना आगे बढ़ रहा है। पति-पत्नी दोनों मिलकर कमाएं तो आर्थिक,सामाजिक दिक्कतों का सामाना नहीं करना पड़ता। आपको बधाई।

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    1. जी,आपकी सुंदर मनोभवना का आदर करते हुए आपको मेरा सादर नमन एवम वंदन ।।

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  11. बहुत बढ़िया....
    आंचलिक बोली बड़ी अपनत्व भरी लगती है।
    बहुत अच्छी कविता है।
    साधुवाद, प्रिय जिज्ञासा जी 🙏

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  12. आपकी स्नेह भरी प्रशंसा हमेशा नव सृजन का हौसला देती है,सादर नमन ।।

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  13. देखो बिटिया ! जब खाली होती है औरत जात
    तो इधर उधर बैठती है बतियाती है
    अपना समय गप्प मारने में बिताती है
    और घर में मारती है ताने
    हम बड़ों को देती है उलाहने
    चलो जिस भी सोच से सही पर बड़े अपनी बहू बेटियों को स्वावलंबी बनने मे उनकी मदद करें तो बदलाव आयेगा...
    और सही कहा आपने कि धीरे धीरे ही सही बदलाव आ रहा है...
    बहुत ही सुन्दर सार्थक लाजवाब सृजन।

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    1. आपका बहुत बहुत आभार व्यक्त करती हूं,सुधा जी आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन करती हूं ।

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  14. जब तबीयत से विचार उछलता है तो झक मारकर भी जमाने को बदलना पड़ता है । अति सुन्दर सृजन ।

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    1. आपका बहुत बहुत आभार आपका अमरता जी,सार्थक प्रशंसा को सादर नमन ।

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  15. सुन्दर कविता बदलते जमाने के साथ नहीं चले तो पिछड़ जाएंगे

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    1. आपका बहुत बहुत आभार एवम् अभिनन्दन, ब्लॉग पर आपकी विशेष टिप्पणी का स्वागत है ।

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  16. बड़ी अम्मा का सिद्धांत सुन, मैं मन ही मन मुसकाई
    अपना बैग उठाया और घर चली आई
    मन कह रहा है कि कहीं कुछ ठहराव है
    स्त्री जीवन में आ रहा बड़ा बदलाव है----बहुत अच्छी कविता है, गहरे भाव।

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    1. संदीप जी आपकी प्रशंसनीय उत्साहवर्धक प्रशंसा को सादर नमन एवम वंदन ।

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  17. बड़ी अम्मा का सिद्धांत सुन, मैं मन ही मन मुसकाई
    अपना बैग उठाया और घर चली आई
    मन कह रहा है कि कहीं कुछ ठहराव है
    स्त्री जीवन में आ रहा बड़ा बदलाव है
    सच कहा,लोगों की सोच में बदलाव आ रहा है। बेहतरीन रचना।

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  18. आपकी मनोबल बढ़ाती प्रशंसा का तहेदिल से स्वागत करती हूं, ब्लॉग पर आपके स्नेह की आभारी हूं ।।

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  19. नारी समझ रही नारी कि व्यथा
    बनाना चाह रही अब उसे सख्त ...

    खूब बढ़िया लिखा सार्थक लाजवाब सृजन।

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  20. आपका बहुत आभार आदरणीय संजय जी, आपका हार्दिक आभार एवम अभिनंदन करती ।

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