आप लोग सुनते कहाँ हैं

सन्नाटे में घर है
पूरा शहर है
यूँ कहें पूरा देश है
बदला हुआ परिवेश है
रात में सन्नाटा चीरतीं हैं कुछ आवाजें
एंबुलेंसें
आती जाती गाड़ी 
सायरन बजाती घड़ी घड़ी
पाँच मिनट बाद 
पीछे से औरत के रोने की आवाज
आती है सुनाई 
साथ में दो मासूम बच्चों की परछाई
दिखी
और ये कहती हुई चीखी
पापा लौट आओ
इस तरह हमे छोड़कर मत जाओ
कितनी बार कहा था,घर से मत निकलो
मास्क पहन लो
पर आपने हमारी न मानी
आपको हमसे दूर ले गई, आपकी नादानी
क्या मिला आपको ? यूँ रुला के
हमें ऐसी दशा में पहुँचा के
जहाँ न आप हो न आपकी परछाई है
एक अजीब सी खामोशी छाई है
उसी खामोशी के साए में हम बस जिंदा हैं
पापा हम आप से बहुत शर्मिंदा हैं
आपको बचा नही पाए
और आप से जो, कह भी नहीं पाए
वो भुगतना सब कुछ अब हमें यहाँ है
क्योंकि हम बच्चों की बात
आप बड़े लोग सुनते कहाँ हैं ?

**जिज्ञासा सिंह**

35 टिप्‍पणियां:

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 02 मई 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. आदरणीय दीदी,प्रणाम ! "पांच लिकों का आनंद पर" मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका हृदय से आभार व्यक्त करती हूं । आपको मेरा सादर नमन ।

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  3. "मास्क पहन लो
    पर आपने हमारी न मानी
    आपको हमसे दूर ले गई, आपकी नादानी"

    बस,एक लापरवाही और पूरा परिवार तबाह ,मार्मिक सृजन जिज्ञासा जी

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    1. बहुत बहुत आभार कामिनी जी,आपकी टिप्पणी को नमन करती हूं।

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  4. काश बच्चों की बात सुनना बड़े सीख लें! बहुत-सी मुश्किलें आसान हो जाएं। अच्छी अभिव्यक्ति के लिए अभिनंदन जिज्ञासा जी।

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  5. बहुत ही दुखद स्थिति है. असावधान तो कोरोना की चपेट में आ ही रहे हैं, सावधान और सतर्क भी इस से अपना पूरी तरह से बचाव नहीं कर पा रहे हैं.

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    1. सही कह रहे हैं आप । आपकी विशेष प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन करती हूं,आपको मेरा सादर अभिवादन ।

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  6. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०१-०५ -२०२१) को 'सुधरेंगे फिर हाल'(चर्चा अंक-४०५३) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  7. अनीता जी मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय से आपका आभार एवम अभिनंदन । बहुत ही सकारात्मक शीर्षक लिया है अपने ।आपको बहुत बहुत शुभकामनाएं ।

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  8. जहाँ न आप हो न आपकी परछाई है
    एक अजीब सी खामोशी छाई है
    मौत के तांडव करते समय में, आपका ये मार्मिक
    शब्द चित्र निशब्द कर गया था! घर के मुखिया को खो बैठे एक पीड़ित परिवार के साथ- साथ दिवंगत के बच्चों की विरह वेदना ने वेदना में डुबो दिया! मन के इस प्रलाप और रुदन के बाद कुछ कहते नहीं बनता! किसी अभागे परिवार का ये सच जाने कितने लोगों का सच बन चुका आजकल 😔😔

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    1. बिल्कुल सही कहा आपने रेणु जी,आजकल रोज ही ये तांडव दिख रहा है । आप को सादर शुभकामनाएं ।

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  9. रुला दिया आपने जिज्ञासा जी मैं नशब्द हूं आपकी अभिव्यक्ति ने सबज्ञकह दिया।
    अप्रतिम।

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    1. ऐसे दृश्य देखकर मैं भी रोज व्यथित हो रही हूं। और आप सभी के लिए अच्छे स्वास्थ्य की कामना नित्यप्रति ईश्वर से करती हूं,सादर शुभकामनाएं कुसुम जी ।

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  10. अत्यंत क्षोभ पूर्ण चित्रण ... आह!

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    1. ऐसे समय में आह के सिवा कुछ नहीं निकल रहा । आपके लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाएं अमृता जी ।

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  11. आज कल यही चित्र नज़र आ रहे । बस अब तो नादानी से बचें ।

    सार्थक लेखन

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    1. जी सच कहा आपने दीदी,सभी को बहुत सावधानी से रहना चाहिए ।आपको मेरी हार्दिक शुभकामनाएं एवम नमन ।

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  12. मार्मिक रचना, वर्तमान में कुछ ऐसा ही तो घट रहा है शहर शहर, इससे सीख लेकर अब सभी को सजग रहना है

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    1. जी,सही कहा आपने अनीता दीदी, जो लापरवाहियां हुईं उसका खामियाजा हम सब भुगत रहे है, अब तो बहुत सतर्क रहने की जरूरत है । आपको मेरी सादर शुभकामनाएं ।

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  13. दिल को छूती बहुत ही सुंदर रचना, जिज्ञासा दी।

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    1. आपका बहुत आभार ज्योति जी,आपको मेरी हार्दिक शुभकामनाएं एवम नमन।

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  14. आपका बहुत आभार आदरणीया अनुराधा जी, सादर शुभकामनाएं एवम नमन ।

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  15. वर्तमान स्थिति बहुत भयवाह है

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  16. आदरणीया मैम, आपकी इस रचना ने भावुक कर दिया। बहुत ही करुण रचना जो ना केवल उस परिवार की वेदना दर्शाती है जो अपनों को खोने के दुख से गुजर रहा है, साथ ही बहुत ही सटीक संदेश दे कर, सभी को नियम पालन के प्रति जागरूक किया है । काश आपकी यह रचना सब को जागृत कर दे ,लोग अपने परिवार और बच्चों के बारे में सोंच कर, यह लापरवाही बंद कर दें।
    यहाँ हमारे मुहल्ले में भी देख रहीं हूँ , जब सुबह की सैर के लिए
    निकलती हूँ, कितने लोग (सभी बड़े ) या तो मास्क नहीं पहने होते हैं या फिर उनका मास्क उनकी ठुड्डी पर लटका होता है । सामाजिक दूरी का नियम भी तोड़ा जा रहा है, कितने लोग सुबह की सैर अभी अभी अपने दोस्तों के साथ मिल कर ही करते हैं । मन करता है उन सब को आपकी यह रचना पढ़ा दूँ पर ये संभव नहीं है । हृदय से आभार इस सुंदर रचना के लिए व आपको प्रणाम ।

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    1. बहुत ही सार्थक व्याख्यात्मक प्रतिक्रिया के लिए बहुत आभार प्रिय अनंता, तुम्हारी बात सौ प्रतिशत सही है, तुम्हें ढ़ेर सारा स्नेहाशीष और ढेरों शुभकामनाएं ।

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  17. कितनी बार कहा था,घर से मत निकलो
    मास्क पहन लो
    पर आपने हमारी न मानी
    आपको हमसे दूर ले गई, आपकी नादानी
    क्या मिला आपको ? यूँ रुला के
    हमें ऐसी दशा में पहुँचा के
    जहाँ न आप हो न आपकी परछाई है
    एक अजीब सी खामोशी छाई है
    उसी खामोशी के साए में हम बस जिंदा हैं
    पापा हम आप से बहुत शर्मिंदा हैं
    बहुत ही हृदयस्पर्शी मार्मिक सटीक संदेशपूर्ण सृजन आज के सामयिक हालातों पर...।
    मास्क न पहनने वालों को शर्मिंदा होना चाहिए अपनों को व पूरी देश दुनिया को खतरे में डालने के लिए।

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    1. बहुत आभार सुधा जी,आपकी सुंदर व्याख्यात्मक प्रतिक्रिया के लिए आपको मेरा नमन एवम वंदन ।

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  18. आदरणीय उर्मिला जी,आपका बहुत बहुत आभार एवम आपको मेरा नमन ।

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