मानवता के दूत

 

तुम्हारी माँ 
क्या ? हो सकती है मेरी माँ 
गर हाँ 
तो आओ 
मुझमें समा जाओ

तोड़ दो सारा बंधन
करो ग्रहण मेरा आलिंगन
गिरा दो अपने,पराए की दीवार
मिटा दो अहंकार

समा जाएं हम फिर से मातृत्व के गर्भ में
दोबारा, जन्म लें मानवता के उत्थान के संदर्भ में
फिर क्या कठिन हो हमारी डगर
अग्रणी हो जब प्रखर

सरिता हो जब हमारी संगिनी
बर्फ बन जाय ज्वालामुखी की अग्नी
व्योम सा हो विस्तार
हरा भरा,पल्लवित, कुसुमित हो,ये संसार

 हंसेगी,मातृभूमि गदगदाएगी
हमारे अटूट बंधन को सीने से लगाएगी
कहेगी,वाह रे मिलन मेरे सपूतों का 
मानवता के दूतों का ।।

**जिज्ञासा सिंह**

28 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. बहुत बहुत आभार शिवम जी, आपकी प्रशंसा को हार्दिक नमन करती हूं ।

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  2. बहुत सुंदर कव‍िता ज‍िज्ञासा जी,...समा जाएं हम फिर से मातृत्व के गर्भ में
    दोबारा, जन्म लें मानवता के उत्थान के संदर्भ में
    फिर क्या कठिन हो हमारी डगर
    अग्रणी हो जब प्रखर..क्या बात कही है..वाह

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    1. बहुत बहुत आभार अलकनंदा जी, आपकी प्रशंसा को हार्दिक नमन करती हूं ।

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  3. उत्तर
    1. ब्लॉग पर आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया का हार्दिक स्वागत करती हूं।सादर नमन ।

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  4. बहुत सुन्दर चाह ...
    समां जाएँ माँ के साथ ... मानवता की सेवा तो इस जन्म में भी हो सकती है ... माँ का आशीर्वाद हमेशा रहता है ...

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    1. आपका बहुत बहुत आभार दिगम्बर नासवा जी, आपको मेरा सादर नमन।

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  5. हंसेगी,मातृभूमि गदगदाएगी
    हमारे अटूट बंधन को सीने से लगाएगी
    कहेगी,वाह रे मिलन मेरे सपूतों का
    मानवता के दूतों का ।।

    वाह !!अद्भुत सृजन,सादर नमन जिज्ञासा जी

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    1. आपका बहुत बहुत आभार कामिनी जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन करती हूं ।

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  6. उत्तर
    1. आपका बहुत बहुत आभार गगन जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन करती हूं ।

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  7. बहुत अच्छी कविता रची आपने जिज्ञासा जी। अनुकरणीय विचारों से ओतप्रोत। आज ऐसी ही सोच की ज़रूरत है। अभिनंदन आपका।

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    1. जितेन्द्र जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन करती हूं ।सादर शुभकामनाएं।

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  8. वाह!!
    अद्भुत सृजनात्मकता एक अलहदा सी सोच।
    बहुत सुंदर सृजन संवेदनाओं से ओतप्रोत।

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    1. बहुत बहुत आभार कुसुम जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन करती हूं ।

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  9. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा रविवार ( 16-05-2021) को
    "हम बसे हैं पहाड़ों के परिवार में"(चर्चा अंक-4067)
    पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित है.धन्यवाद

    "मीना भारद्वाज"

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  10. आदरणीय मीना जी, नमस्कार !
    मेरी रचना को चर्चा अंक में शामिल करने के लिए आपका तहे दिल से नमन करती हूं ।सादर शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह ।

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  11. उत्तर
    1. आपका बहुत बहुत आभार, आपको मेरा सादर अभिवादन ।

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  12. बहुत सुंदर सृजन, जिज्ञासा दी।

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    1. बहुत बहुत आभार ज्योति जी, आपकी प्रशंसा को सादर नमन ।

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  13. वाह ज‍िज्ञासा जी,

    सरिता हो जब हमारी संगिनी
    बर्फ बन जाय ज्वालामुखी की अग्नी
    व्योम सा हो विस्तार
    हरा भरा,पल्लवित, कुसुमित हो,ये संसार----

    कल्‍पना हो तो ऐसी ही "सर्वकल्‍याणी"

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    1. मन को छूती आत्मीय टिप्पणी के लिए आपका बहुत बहुत आभार अलकनंदा जी,आपको मेरा सादर नमन ।

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  14. समा जाएं हम फिर से मातृत्व के गर्भ में//
    दोबारा, जन्म लें मानवता के उत्थान के संदर्भ में//
    फिर क्या कठिन हो हमारी डगर//
    अग्रणी हो जब प्रखर//////
     ---- जैसी अनमोल पंक्तियों के साथ , बहुत सुंदर और मनोहर सद्भावनाओं से परिपूर्ण  सृजन प्रिय जिज्ञासा जी |मानवता की सेवा से बढ़कर ना कोई  धर्म  है ना कर्म | यदि इस ज़ज्बे में सबको साथ लेकर चलने की भावना भी समाहित हो तो कहना ही क्या !एक शानदार रचना जो   अनमोल है | हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं  इस मानवीयता   के भावों से    ओतप्रोत रचना के लिए |

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    1. बहुत बहुत आभार प्रिय रेणु जी,आपकी व्याख्यात्मक प्रशंसा ने मन मोह लिया और संजीवनी सी मिल गई आपको बहुत सारी शुभकामनाएं ।

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  15. एक कवि हृदय क्या क्या सोच सकता है इसका बेहतरीन नमूना है यह रचना । बहुत खूब

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  16. आदरणीय दीदी,प्रणाम!
    आज आपने मेरी कई रचनाओं पर टिप्पणी कर मुझे अभिभूत कर दिया,आप सबके स्नेह का ही बाल है,जो मैं कुछ लिखा पा रही हूं,आपको मेरा सादर नमन ।

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