बचपन की आस
मेरी भी होती माँ काश
वो चूमतीं मेरा तन मन
मैं घड़ी घड़ी करती आलिंगन
मांगती मोटर व कार
सपनों से भरा संसार
वो देखतीं हँसकर
कहतीं थोड़ा सा ठहर
अरी ! ओ नटखट
तू कितनी भोली है चल हट
क्या संसार इतना छोटा है ?
जानती नहीं वो भैंसे सा मोटा है
वहाँ बहुत बड़ा सागर है
तेरी तो छोटी सी गागर है
कैसे भरेगी इतना पानी
भूल जाएंगी नानी
नानी भूलीं तो कहानी कौन सुनाएगा
कि परियों का राजा आएगा,
सागर पार संसार ले जाएगा
संसार में जब आएगी रात
तू माँ को करेगी याद
फिर कौन सुनाएगा लोरी
दूध से भरी कटोरी
तुझे नींद कैसे आएगी
माँ की यादों में रात बीत जाएगी
हो जाएगी भोर
चिड़ियाँ चहचाएंगीं,नाच उठेगा मोर
नाचते मोर को देख, मैंने भी चाहा नाचना
और टूट गया मेरा प्यारा सपना
काश ! ये सपना फिर आए
माँ के भ्रम में जीवन बीत जाए ।।
**जिज्ञासा सिंह**
"आप सभी को मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ"
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बहुत सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार शिवम जी, आपकी प्रशंसा को नमन ।
हटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंअभिलाषा जी,आपका बहुत बहुत आभार व्यक्त करती हूं, आपकी प्रशंसा को सादर नमन ।
हटाएंइस संसार का कोई प्राणी बिना माँ का नहीं होता। माँ एक निरा भौतिक आकृति नहीं, प्रत्युत एक परम भावनात्मक बुनावट है जो प्राणी के प्रत्येक श्वास, उसके रक्त के हरेक कण, उसके मन के प्रत्येक आरोह-अवरोह, उसके अनुभव की हर लय, उसके अहसास के प्रत्येक उच्छ्वास और उसकी कल्पनाओं के हरेक रंग से लेकर त्रिगुणातीत परमात्म लोक तक फैली रहती है। सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंमां की इतनी सुन्दर व्याख्या,आपके एक एक शब्द के पर्याय को दिल से नमन करती हूं, बहुत सुंदर लिखा आपने आनन्द की सुंदर अनुभूति हुई । इन शब्दों की भूरि भूरि प्रशंसा करती हूं,आपको मेरा सादर अभिवादन ।
हटाएंबचपन की आस
जवाब देंहटाएंमेरी भी होती माँ काश
वो चूमतीं मेरा तन मन
मैं घड़ी घड़ी करती आलिंगन
मातृहीन बच्चों का दर्द उकेरा है आपने सृजन...इस काश ने बड़ी टीस पैदा की दिल में...।
बहुत ही सुन्दर हृदयस्पर्शी सृजन
मातृदिवस की अनंत शुभकामनाएं।
सुधा जी,वो जीवन बड़ा ही दर्द भरा होता है,जब आप जान ही नहीं पाते समझ हो नहीं पाते कि जो कुछ भी गलत चल रहा है,वो इसलिए है, कि आप मातृविहीन बच्चे है, और जब आपको समझ आती है, तब तक आप आप उन परेशानियों,उलझनों से निपटना जन जाते हैं । आपकी भावपूर्ण प्रशंसा के लिए आपका कोटि कोटि आभार ।
हटाएंमाँ पर लिखी हर एक रचना माँ है....माँ से कुछ नहीं छुपा है। माँ किसी की हो या ना हो....माँ की ममता से कोई वंचित नहीं रह पाया है।
जवाब देंहटाएंआपकी इस खूबसूरत रचना को पढ उसे प्रेरित होकर ये कुछ पंक्तियाँ मैंने लिख दिया। बहुत बढ़िया है माँ पर आपकी यह रचना।
प्रकाश जी आपकी आशु पंक्तियां दिल को छू गईं, आपके एक एक शब्द बहुत भावपूर्ण हैं,सादर नमन आपको ।
हटाएंबहुत मार्मिक कविता !
जवाब देंहटाएंबचपन में ही जिसकी माँ उस से बिछड़ जाए, उसके दर्द की थाह कौन ले सकता है?
जी,सही कहा आपने आदरणीय सर,आप तो हास्य व्यंग,दर्द ,जीवन के हर पहलू से रिश्ता रखते हैं,आप जरूर समझते होगें,उस निरीह बालक को, जो मां के बिना इतना संकोची हो जाता है, कि जन ही नहीं पाता कि उसे किस बात की कमी है, आपके स्नेह सिक्त टिप्पणी को हार्दिक नमन करती हूं ।
हटाएंमाँ ! जब नहीं रहती है तो और भी पास रहती है !
जवाब देंहटाएंगगन जी,सही कहा आपने,पर बालमन महसूस नहीं कर पाता, कि मां कहीं आसपास है,आपको मेरा सादर अभिवादन ।
हटाएंबचपन की आस
जवाब देंहटाएंमेरी भी होती माँ काश
वो चूमतीं मेरा तन मन
मैं घड़ी घड़ी करती आलिंगन
माँ की कमी कभी पूरी नहीं होती।बेहद मर्मस्पर्शी सृजन जिज्ञासा जी।
आदरणीय अनुराधा जी, आपकी बात बिलकुल सही है,आपकी आत्मीय टप्पणी को दिल से लगा लिया है ,सादर नमन ।
जवाब देंहटाएंप्रिय जिज्ञासा जी, एक बालक या कहूं उससे भी ज्यादा एक बालिका के जीवन में मां का ना होना कितना। दर्दनाक होता है ये सर्वविदित है। फिर भी एक बेटी के जीवन में ताउम्र वो स्थान रिक्त ही रहता है ये देखा है मैंने। भावुक और निशब्द कर गई आपकी रचना। सस्नेह--
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार रेणु जी ,आपकी आत्मीय प्रतिक्रिया को नमन एवम वंदन ।
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (१० -०५ -२०२१) को 'फ़िक्र से भरी बेटियां माँ जैसी हो जाती हैं'(चर्चा अंक-४०६१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
अनीता जी, आपका बहुत बहुत आभार, आपको मेरा सादर नमन एवम शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत सृजन जिसमें दर्द और माँ के प्यार की चाह साफ झलक रही है! धन्यवाद मैम🙏🙏
जवाब देंहटाएंमैने भी माँ पर कुछ पंक्तियाँ लिखी एक बार देखिएगा जरूर!
वैसे माँ के प्यार को शब्दों में व्यक्त कर पाना बहुत ही कठिन है!
बहुत बहुत आभार एवम अभिनंदन प्रिय मनीषा जी,आपकी आत्मीय प्रतिक्रिया का दिल से आदर करती हूं ।
हटाएंवहाँ बहुत बड़ा सागर है
जवाब देंहटाएंतेरी तो छोटी सी गागर है
कैसे भरेगी इतना पानी
भूल जाएंगी नानी
मसूम सी दिखने वाली पंक्तियों मे जीवन सागर की अनन्त गहराई
सुन्दर ।
आपकी प्रशंसा ने रचना के सृजन को सार्थक कर दिया,आपका बहुत आभार, ब्लॉग पर आपकी बहुमूल्य टिप्पणी का हार्दिक स्वागत करती हूं,सादर शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी सृजन जिज्ञासा जी सच बिना माँ का बचपन पूरी जिंदगी में एक खाली पन छोड़ता है।
जवाब देंहटाएंआपकी यह रचना आपके दर्द के साथ सपने में भी आज भी माँ को ढूंढ रही है।
निशब्द हूं पर यही कहूंगी,माँ शब्द ही ऐसा है बोलते ही माँ लगता है शीश पर एक आशीष का हाथ आ गया।
बहुत बहुत आभार कुसुम जी,कविता के हर पहलू पर आपकी दृष्टि गई,सृजन को सम्मान मिला ,आपकी सुंदर टिप्पणी दिल को छू गई ,आपको मेरा सादर नमन ।
हटाएंजिज्ञासा दी, माँ के बिना बचपन की कल्पना करना भी बहुत मुश्किल है। जिसने ये दर्द झेला है वो ही इसे पहचान सकता है। आपकी माँ के बारे में जानकर दुख हुआ।
जवाब देंहटाएंसच ज्योति जी,आपके स्नेह से अभिभूत हूं,और सदैव स्नेह की अभिलाषा रहेगी । आपको सादर शुभकामनाएं ।
हटाएंमाँ.....हृदय को उद्वेलित कर रहा है और भावुक भी । अति सुन्दर सृजन के लिए बधाई ।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत आभार अमृता जी,मैने ये कविता बहुत साल पहले लिखी थी,मन बड़ा उदास था, शायद अब उबारना सीख गया है, आपके स्नेह की आभारी हूं,सादर शुभकामनाएं।
हटाएंआपकी रचना दिल के बहुत करीब लगी जिज्ञासा जी।
जवाब देंहटाएंमीना जी, आपके स्नेहिल उद्गार को दिल से लगा लिया है, आपको सादर नमन और वंदन ।
जवाब देंहटाएंमातृ दिवस पर सपने में माँ को देखना और उसके माध्यम से मन की बात करना । मन को भिगो गया ।
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन
आपका बहुत बहुत आभार दीदी,आपकी आत्मीय प्रशंसा को हार्दिक नमन।
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