रह रह बरस भिगाय रही
देखि देखि मोहे हँसि हँसि जाए
रिमझिम,रिमझिम गाय रही
मोरी व्यथा पीड़ा वो जाने
तबहुँ गरज उमड़े घुमड़े
टूटे मन की कहाँ सुने वो
मेघदूत संग खूब उड़े
मेरे दृग अँसुअन से भरे
मधु रस से भरी वो चिढ़ाय रही
घुंघुरू बाँधे नाच रही वह
मोरी अंटरिया पे छन छन
झरते मोती अंग अंग से
गुंथे हुए रुनझुन रुनझुन
तरुवर झूमे ऐसे जैसे
मदिरा मधुर झुमाय रही
बैठ झरोखे, ताक रही मैं
उसकी मोहक मधुर अदा
मैं तो जल भुन कतरा होऊँ
सौ सठ है संताप लदा
हाय ठगिनिया बैरी सौतन
मोहे देख मुस्काय रही
जब से सजन भए परदेसी
न पाती संदेस न कोय
तड़पूँ जैसे जल बिनु मछरी
अँसुअन अंचरा रही भिगोय
प्रियतम बिनु दुनिया मोरी सूनी
उस पर बदरी छाय रही
आजु बदरिया ठगनी आई
रह रह बरस भिगाय रही।।
**जिज्ञासा सिंह**
बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंबहुत सताने के बाद ठगिनी, बैरिन बदरिया आख़िरकार उमड़-घुमड़ कर बरस ही गयी !
जी,सही कहा आपने, आपकी प्रशंसा को सादर नमन।
हटाएंवाह.....बहुत सुन्दर 'तरुवर झूमे ऐसे जैसे मदिरा घुमाय रही"भ7त खूब....
जवाब देंहटाएंकविता की प्रशंसा के लिए आपको मेरा सादर नमन।
हटाएंवाह! चित्त चौर बदरी का मोहक वर्णन , सुंदर भाव, सुंदर व्यंजनाएं, अलंकारों से सराबोर, विरह श्रृंगार रस की आंचलिक मेखला ओढ़े अभिनव रचना।
जवाब देंहटाएंआपकी मनमोहक प्रशंसा मन को मोह गयी,सादर नमन एकम हार्दिक आभार।
हटाएंसादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार (23-07-2021) को "इंद्र-धनुष जो स्वर्ग-सेतु-सा वृक्षों के शिखरों पर है" (चर्चा अंक- 4134) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद सहित।
"मीना भारद्वाज"
आदरणीय मीना दीदी, नमस्कार !
हटाएंमेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार एवं अभिनंदन,शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह।
बहुत खूबसूरत रचना । बदल बरसे या न बरसे इस रचना से भीग गए ।
जवाब देंहटाएंरचना की प्रशंसा के लिए आपका तहें दिल से आभार,आपको मेरा सादर नमन।
हटाएंबहुत सुन्दर गीतमय काव्य!!
जवाब देंहटाएंरचना की प्रशंसा के लिए आपका हार्दिक आभार,आपको मेरा सादर नमन।अनुपमा जी,
हटाएंअरे वाह👌♥️
जवाब देंहटाएं🌧️🌨️⛈️🌼
बहुत बहुत आभार शिवम् जी।
जवाब देंहटाएंअपनी प्रतिभा को निखारना, संवारना, मांजना तो कोई आपसे सीखे जिज्ञासा जी। प्रत्येक बार आप कुछ और बेहतर, कुछ और श्रेष्ठतर प्रस्तुत करती हैं। मानभवन है यह कविता और इस तथ्य का प्रमाण है कि आप केवल भाषा एवं छंद पर ही नहीं, भावों की गहराई पर भी ध्यान दे रही हैं। आपकी प्रत्येक नवीन रचना पढ़कर मेरा मन प्रसन्नता से भर जाता है। आज भी यही हुआ है। अनंत शुभकामनाएं आपको।
जवाब देंहटाएंआपकी मुझे प्रोत्साहित करती प्रशंसनीय प्रतिक्रिया से अभिभूत हूं, कहीं न कहीं आप जैसे विज्ञ और समीक्षक का भी मार्गदर्शन है,कुछ अच्छा लिख पाने में,सदैव आपके मार्गदर्शन की अभिलाषा रहेगी ।सादर आभार एवम नमन।
हटाएंबहुत सुंदर, बहुत बढ़िया भावपूर्ण गीत। आपको बहुत बहुत शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका वीरेन्द्र जी।सादर नमन।
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका ओंकार जी।
हटाएंबहुत नाज़ुक भावों से लिखी गई कविता सावन का सौंदर्य बढ़ा जाती है - - मुग्धता ही मुग्धता बिखेरती हुई, साधुवाद सह।
जवाब देंहटाएंआपकी सुंदर टिप्पणी ने कविता का मान बढ़ा दिया।आपको मेरा सादर नमन।
हटाएंबैठ झरोखे, ताक रही मैं
जवाब देंहटाएंउसकी मोहक मधुर अदा
मैं तो जल भुन कतरा होऊँ
सौ सठ है संताप लदा
अहो !! सावन और बिरहन की व्यथा-कथा....आंनद आ गया जिज्ञासा जी आपकी इस बदरी में भींग कर,सादर
बहुत बहुत आभार कामिनी जी,आपकी सुंदर टिप्पणी ने कविता को सार्थक कर दिया ।
हटाएंअहा, लोकभाषा की मधुरता। सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार प्रवीण जी।आपको मेरा सादर नमन।
जवाब देंहटाएंआपको सपरिवार सावन के पावन पर्व ही हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद गगन को ।
जवाब देंहटाएंवाह!बहुत ही सुंदर सृजन मन को मोहता।
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत बहुत आभार आपका अनीता जी,आपकी प्रशंसा को मेरा सादर नमन।
जवाब देंहटाएंबदरिया आखिरकार बरस गयी.. प्रेमिका की विरह को दर्शाती खूबसूरत रचना....
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार विकास जी।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार आदरणीय।
जवाब देंहटाएंआजु बदरिया ठगिनी आई
जवाब देंहटाएंरह रह बरस भिगाय रही
देखि देखि मोहे हँसि हँसि जाए
रिमझिम,रिमझिम गाय रही
बहुत बढ़िया प्रिय जिज्ञासा जी | इधर बदरी बैरन आई ---उधर आँखों में यादों के सैलाब छलकने लगे | बरखा के बहाने गोरी के मन की व्यथा कहती अति प्रभावी , भावपूर्ण रचना |
प्रिय सखी आप तो सर्वविदित हैं, आपके कहे का सर्वदा समर्थन है, बहुत आभार आपका।
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