समय कह रहा है, समझो
बूझो
कुछ, नहीं तो बड़ी देर हो जाएगी
बात समझ आएगी
जब तक
तब तक
गाड़ी
अरे ! रेलगाड़ी
नहीं, जीवन की
तन की, मन की, और धन की
यहीं, इसी स्टेशन पे
बिना किसी टेंशन के
छूट जाएगी
रह जाएगी
मलती हुई ये हथेलियां
और पहेलियां
बुझाओगे
समझ नहीं पाओगे
क्या खोया क्या पाया
अपने हाथों से क्या क्या लुटाया
कुछ बचा हो
जो कुछ भी, झूठा सच्चा हो
अब से लपेट लो
समेट लो
कम्मर कथरी
गुदरी
क्योंकि गुदरी के लाल
भी कर जाते हैं कमाल
जरूरी नहीं सब कुछ आलीशान हो
पृथ्वी पर तुम बिन बुलाए मेहमान हो
ये सोचकर
मुँह हाथ पोंछकर
हो जाओ समय के आगे नतमस्तक
उसे बनाओ अपना अभिभावक
माता पिता वही है
परमपिता भी है
समयानुसार कुछ करो
शीश उसके चरणों में धरो
शिरोधार्य हो जाओ
उसी के गुण गाओ
समझ के साथ
समय का पकड़ लो हाथ
और उसकी धारा में बहते चलो
कुछ न कुछ करते चलो
समय और समझ के साथ जो चला
समझो वह सबसे आगे निकला
क्योंकि जब समय होता है
तब उसकी कीमत नहीं होती
जब समझ आती तो
कुछ करने की हिम्मत नहीं होती...
**जिज्ञासा सिंह**
"समय और समझ के साथ जो चला
जवाब देंहटाएंसमझो वह सबसे आगे निकला"
बिलकुल सही कहा आपने।
बहुत सुंदर।
बहुत बहुत आभार शिवम् जी।
हटाएंसमय का पकड़ लो हाथ
जवाब देंहटाएंऔर उसकी धारा में बहते चलो
कुछ न कुछ करते चलो
समय और समझ के साथ जो चला
समझो वह सबसे आगे निकला
वाह बहुत सुंदर और सार्थक अभिव्यक्ति जिज्ञासा जी।
आपका बहुत बहुत आभार अनुराधा जी,आपकी प्रशंसा को सादर नमन।
हटाएंसादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार (09-07-2021) को "सावन की है छटा निराली" (चर्चा अंक- 4120) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद सहित।
"मीना भारद्वाज"
आदरणीय मीना जी,नमस्कार !
हटाएंमेरी रचना के चयन के लिए आपका असंख्य आभार,शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह...
बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंसमय बड़ा बलवान किन्तु हमारी दृढ़-इच्छा शक्ति उस से भी कहीं अधिक बलवान !
आदरणीय सर,आपकी प्रशंसा का तहेदिल से आभार व्यक्त करती हूँ।सादर नमन।
हटाएंसमय और समझ के साथ जो चला
जवाब देंहटाएंसमझो वह सबसे आगे निकला
अच्छी संदेशप्रद रचना !!
अनुपमा जी आपका कोटिशः आभार,सादर नमन।
जवाब देंहटाएंसमय और समझ के साथ जो चला
जवाब देंहटाएंसमझो वह सबसे आगे निकला
बहुत खूब प्रिय जिज्ञासा जी समय की कीमत को समझना मानव जीवन का सबसे उत्तम व्यवहार है | जो इस व्यवहार में पिछड़ा - वह जीवन की गति से कदमताल कभी नहीं मिला सकता | प्रेरक और सार्थक सृजन के लिए हार्दिक शुभकामनाएं|
बहुत आभार रेणु जी,आपकी प्रशंसा को सादर नमन।
हटाएंकौन कल पर टाले, आज ही समझना होगा जो घट रहा है। सुन्दर विचार।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार प्रवीण जी,आपकी प्रशंसा को सादर नमन।
हटाएंसमय और समझ के साथ जो चला
जवाब देंहटाएंसमझो वह सबसे आगे निकला
बिलकुल सही कहा आपने,बेहतरीन अभिव्यक्ति जिज्ञासा जी
बहुत आभार कामिनी जी,आपकी प्रशंसा को सादर नमन।
हटाएंकायनात और वक्त तो समय-समय पर चेताते ही रहते हैं
जवाब देंहटाएंबहुत आभार गगन जी,आपकी प्रशंसा को सादर नमन।
हटाएंसमय की कीमत को समझना बहुत ज़रूरी । अन्यथा यूँ ही गाड़ी पटरी से उतर जाएगी । सही समझाइश देती रचना ।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार दीदी,आपकी प्रशंसा को सादर नमन एवं वंदन।
जवाब देंहटाएंआंखें खोल देने वाली कविता रची है जिज्ञासा जी आपने। शब्दशः सत्य । अभिनंदन।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार जितेन्द्र जी,सादर नमन।
जवाब देंहटाएंवाह !!! बहुत ही सुंदर एवं सारगर्भित रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार संजय जी,सादर नमन।
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएं