नदी सहारा ढूँढ रही (बाढ़ )


नदी सहारा ढूँढ रही 

भर भर भर भर कटे कटान
गिरे जा रहे बने मकान
नागिन जैसी फन फैलाए
अपना चौबारा सूंघ रही

बूढ़े बाढ़े कई दरख़्त
नदी मुहाना रखते सख्त
काट काट कर दिए गिरा
अब जड़ पकड़े वह झूम रही

वृक्षों पर रहते थे पक्षी
मनुज बन गया उनका भक्षी
विहगों की यादों में डूबी
सरिता दर दर घूम रही

नदी की धारा बन विपदा 
कुछ छोड़ेगी भी नहीं पता
गली गली कूचा कूचा अब 
देहरी अँगना चूम रही 

वो नदी है उसको बहना है
वो इस धरती की गहना है
जो उसका चमन उजाड़े हैं
ले करवट उनको ढूँढ रही 

**जिज्ञासा सिंह**

26 टिप्‍पणियां:

  1. बाढ़ का सजीव चित्रण । नदी शायद मजबूर है इस रूप को धारण करने के लिए । बेहतरीन अभिव्यक्ति ।

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  2. प्रवाह की विकरालता। प्रभावी चित्रण।

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  3. आपने अच्छा विषय चुना है जिज्ञासा जी तथा कविता के माध्यम से उसके साथ न्याय किया है। अभिनन्दन।

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  4. आपका बहुत बहुत आभार जितेन्द्र जी।

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  5. आपकी लिखी रचना सोमवार 9 ,अगस्त 2021 को साझा की गई है ,
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

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    1. मेरी रचना के चयन के लिए आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय दीदी, आपके स्नेह का हृदय से नमन एवम वंदन।

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  6. बहुत बढ़िया सृजन। नदी उनको ढूंढ रही है जिन्होंने उसका चमन उजाड़ा है। वाह। बहुत खूब। सादर।




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    1. बहुत बहुत आभार वीरेन्द्र जी,आपकी प्रशंसा को सादर नमन।

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  7. वो नदी है उसको बहना है
    वो इस धरती की गहना है
    जो उसका चमन उजाड़े हैं
    ले करवट उनको ढूँढ रही! ///क्या बात है प्रिय जिज्ञासा जी | रचना में बाढ़  का जीवंत  शब्दांकन  अत्यंत प्रभावी है !और नदी के प्रति संवेदशीलता  उदार  कवि मन की परिचायक है | नदी की नियति बहते जाना है ---पर इंसानी छेड़छाड़ ने उसे धीरज खोने पर विवश कर दिया | जलधाराएं रुष्ट होकर कितना कहर मचाती हैं |

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  8. प्रिय सखी आपकी व्याख्यात्मक प्रतिक्रिया ने कविता में जान डाल दी,आपको जितना धन्यवाद कहूं कम है। आपके स्नेह की आभारी हूं,मेरा नमन एवम वंदन।

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  9. बाढ़ की विभीषिका का इतनी सुंदरता से वर्णन आप ही कर सकती हैं।
    सरल प्रवाह लिए सुंदर सृजन प्रिय जिज्ञासा जी।
    सस्नेह।

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    1. बहुत बहुत आभार प्रिय श्वेता जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया कविता को सार्थक कर गई।

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  10. कब चेत कर बन सकेगा इन्सान
    कुछ की गलतियों की सज़ा संघ झेल रहा है
    उम्दा चित्रण की बधाई

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    1. आदरणीय दीदी,आपकी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन और वंदन करती हूं 🙏🙏

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  11. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (10-8-21) को "बूँदों की थिरकन"(चर्चा अंक- 4152) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    --
    कामिनी सिन्हा

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    1. प्राय कामिनी जी,नमस्कार !
      मेरी रचना के चयन के लिए आपका हार्दिक आभार एवम अभिनंदन, शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह ।

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  12. बूढ़े बाढ़े कई दरख़्त
    नदी मुहाना रखते सख्त
    काट काट कर दिए गिरा
    अब जड़ पकड़े वह झूम रही
    हमारी करनी का फल तो हमें ही भुगतना होगा...बाढ़ की विभीषिका का लाजवाब शब्दचित्रण
    वाह!!!

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  13. बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी,आपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया कविता को सार्थक कर गई, आपको मेरा सादर नमन एवम वंदन।

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  14. बूढ़े बाढ़े कई दरख़्त
    नदी मुहाना रखते सख्त
    काट काट कर दिए गिरा
    अब जड़ पकड़े वह झूम रही
    मुख्य कारण यही है। बहुत सुंदर और सार्थक अभिव्यक्ति।

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