प्रायश्चित तो हुआ मौन जब तोड़ा
उड़ा गगन तक वेग जिह्वा का घोड़ा
उड़े ज्वाल विकराल अग्नि अंबर तक पहुँची
जला दिए नक्षत्र चंद्रिका की भी भृकुटी
पड़ी हुई सब गाँठ हुई जब जलकर स्वाहा
कर बोला शष्टांग मनुज का मन फिर आहा
भरा व्यथा का राग हृदय में गहरे तक था
घिरा हुआ संताप विकट लब तक था
कैसे क्या समझाता कोई खुद को कितना
कठिन और दुर्गम था खुद से खुदी निकलना
फिर जो मिलता मार्ग सुगमता के कारण वश
करना पड़े कबूल सुयश हो या हो अपयश
मिली बड़ी धिक्कार विवश होकर घबराया
मन पे घाव हजार मौन को तोड़ के पाया
मौन को साधे चले हुए दिन रैना बीते
घुटते मन मस्तिष्क, से कैसे मानव जीते
करो साधना मौन साध लो एक पल क्षण में
जीतेगा फिर मौन विजय होगी हर रण में
**जिज्ञासा सिंह**
चित्र: गुगल से साभार
जनता ने मौन ही तो साध रखा है.
जवाब देंहटाएंवैसे अपना मौन-व्रत तोड़ कर जनता कर भी क्या लेती?
सरकार तो बहरी है.
आदरणीय सर,आपका बहुत बहुत आभार, आपको मेरा सादर नमन ।
हटाएंबहुत सुंदर भाव!
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार। आपको मेरा सादर नमन ।
हटाएंकभी कभी मौन रण जिताता नहीं , कायरता की निशानी भी बन जाता है ।
जवाब देंहटाएंलेकिन जिसने इसे साध लिया वो विजेता भी कहलाता है ।
गहन दार्शनिक भाव।
कैसे क्या समझाता कोई खुद को कितना
कठिन और दुर्गम था खुद से खुदी निकलना
इन पंक्तियों में खुदी का क्या अर्थ है ?
आदरणीय दीदी, आपके प्रश्न का उत्तर,शायद मेरी रचना के सृजन का वक्त है,कभी कभी हमारे मनोभावों का वक्त, मौन पर हावी हो जाता है,चाहे वो संवेदना हो,या खुदी (अस्तित्व) हो या फिर कोई और भाव । आपका ये विमर्श मुझे बहुत अच्छा लगा,आपने कविता को विस्तार दिया आपकी दिल से आभारी हूं,आपको मेरा नमन ।
हटाएंमौन को साधे चले हुए दिन रैना बीते
जवाब देंहटाएंघुटते मन मस्तिष्क, से कैसे मानव जीते
सुंदर रचना।
मनोज जी आपका बहूत बहुत आभार, आपको मेरा सादर नमन एवम वंदन ।
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर मौन के छंद का सौंदर्य नाद । साधना कठिन तो है पर असंभव नहीं । सुन्दर काव्य शिल्प । शेष ...... मौन
जवाब देंहटाएंशेष..... मौन ।बहुत सुंदर । सच हम सबों जी तो हैं,आभार आपका ।
हटाएंमौन प्रबल है। शक्ति समाहित करता है। सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार है आपका।
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (19-9-21) को "खेतों में झुकी हैं डालियाँ" (चर्चा अंक-4192) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
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हटाएंकामिनी जी नमस्कार !
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार एवम अभिनंदन । शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह ।
प्रत्येक रण में जय हो
जवाब देंहटाएंउम्दा लेखन हेतु साधुवाद
आपकी प्रशंसा रचना को सार्थक बना गई,आपको मेरा नमन ।
हटाएंबहुत सुन्दर भावसिक्त सृजन ।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार मीना जी ।
हटाएंवाह बहुत सुंदर, कोमल अभिव्यक्ति, सुन्दर सन्देश भी, पड़ी हुई सब गांठ हुई जब जलकर स्वाहा....बहुत खूब
जवाब देंहटाएंराधे राधे।
आपकी प्रशंसा रचना को सार्थक बना गई,आपको मेरा नमन ।
हटाएंबहुत ही बेहतरीन सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार मनीषा जी ।
जवाब देंहटाएंआपकी कविता के मर्म को ठीक से समझने में तो मुझे समय लगेगा किंतु मौन का मूल्य मेमैं निश्चय ही जानता हूं। जब आयु कम थी, मौन का मोल न समझा, अब समझा है तो आयु बीत चली है। आभार एवं अभिनंदन आपका।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका ।
हटाएंकरो साधना मौन साध लो एक पल क्षण में
जवाब देंहटाएंजीतेगा फिर मौन विजय होगी हर रण में।
जी मेम जरूर विजय होगी । सुंदर रचना , बहुत बधाई ।
आपका बहुत बहुत आभार
जवाब देंहटाएंकरो साधना मौन साध लो एक पल क्षण में
जवाब देंहटाएंजीतेगा फिर मौन विजय होगी हर रण में
बशर्ते मौन मौन हो खामोशी न हो
वाह!!!
लाजवाब सृजन।
बहुत बहुत आभार सुधा जी, आपकी बात सही है,कभी कभी हम खामोशी को हम मौन मान लेते हैं ।
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