देख शशि धवल मनोहर है
किरन पे बैठ रहीं परियाँ
बाँह फैलाए अंबर है
बैठ दरिया के तट पर मैं
किरन एक ढूँढ रही तल में
अनोखी छवि सुंदर चंचल
मचाए हलचल है जल में
वो बैठा दूर गगन में भी
बुलाता मुझको सस्वर है।।
अरे कोई बाँह पकड़ मेरी
चलाचल किरणों के जग में
बिछे हैं सुमन सितारों के
सुगंधित धूप भरे रग में
पवन संग उड़ते जाते पग
दिख रहा सपनों का घर है
झरे कुमकुम रोली अच्छत
अलक श्रृंगार करे है यूँ
बुलावा भेजा जब शशि ने
भला फिर जाऊँ न मैं क्यूँ
क्षितिज के पास मिलन होगा
साक्षी संध्या, दिनकर है ।।
एक शशि भूषण है नभ का
एक मेरे दृग में रहता
मलय बन शीश मेरे शोभित
है हर क्षण अंग अंग बहता
कलित, रमणीक, रम्य, सुंदर
सुशोभित जो मेरे उर है ।।
आज शशि धवल मनोहर है ।।
**जिज्ञासा सिंह**
अहा मुग्ध करता सृजन ,पढ़कर लिखने का मन हो गया आपकी रचना को समर्पित कुछ पंक्तियाँ 👇
जवाब देंहटाएंऐ चाँद तुम...
कभी किसी भाल पर
बिंदिया से चमकते हो
कभी घूँघट की आड़ से
झाँकता गोरी का आनन
कभी विरहन के दुश्मन
कभी संदेश वाहक बनते हो
क्या सब सच है
या है कवियों की कल्पना
विज्ञान तुम्हें न जाने
क्या क्या बताता है
विश्वास होता है
और नहीं भी
क्योंकि कवि मन को
तुम्हारी आलोकित
मन को आह्लादित करने वाली
छवि बस भाती
भ्रम में रहना सुखद लगता
ऐ चांद मुझे तुम
मन भावन लगते
तुम ही बताओ तुम क्या हो
सच कोई जादू का पिटारा
या फिर धुरी पर घूमता
एक नीरस सा उपग्रह बेजान।।
ऐ चांद तुम.....
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
प्रिय कुसुम बहन आपकी प्रिय जिज्ञासा बीबीकी रचना को द्विगुणित करती पंक्तियां सोने पे सुहागा कहूं तो अतिशयोक्ति न होगी। आपकी सुदक्ष लेखनी सदैव काव्य रसिकों को अचंभित करती है। आपकी लेखनी का प्रवाह निर्बाध रहे यही है। ढ़ेरों शुभकामनाएं और प्यार आपके लिए 👌👌 🙏🌷🌷🌷❤️
हटाएंबढ़िया!☺️☺️🙏🙏
हटाएंकुसुम जी, आपकी सुंदर काव्यमय टिप्पणी रचना को विस्तार दे गई,सच कहूं तो मैं आपसे निरंतर सीखती रहती हूं,आपके मनमोहक गूढ़ सृजन हमेशा प्रेरित करते हैं,चाहे को भी विधा हो ।
हटाएंआपके स्नेह की बहुत आभारी हूं,आपकी प्रशंसा को सादर नमन ।
कोई बांह पकड़कर मेरी चलाचल किरणों के संग उत्तम चित्र
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन ।
हटाएंप्रिय जिज्ञासा जी, चांद नारी मन का सबसे प्रिय सखा है। उसे मुग्ध हो निहारना और बतियाना नारी मन का मनभावन शगल है। दूर हो कर भी ह्रदय के बिल्कुल पास रहता है चांद! चांद और चांद सरीखे साथी को परिभाषित करती खूबसूरत प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका ,आपकी जीवंत प्रशंसनीय प्रतिक्रियायें आजीवन एक ऊर्जा देती रहेंगी ऐसा महसूस कर हार्दिक खुशी होती है, स्नेह बनाए रखिए रेणु जी । मेरा सादर नमन आपको ।
जवाब देंहटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (23 -10-2021 ) को करवाचौथ सुहाग का, होता पावन पर्व (चर्चा अंक4226) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
आपका बहुत बहुत आभार आरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी ।
हटाएंबहुत ही बढ़िया रचना, जिज्ञासा दी। नभ का भूषण चांद का वर्णन बेमिसाल किया है आपने।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार ज्योति जी ।
हटाएंहृदय का शशि सकल शीतलता और मृदुता दे, यही अपेक्षित है।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार प्रवीण जी ।
हटाएंबेहद खूबसूरत रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार अनुराधा जी ।
हटाएंबैठ दरिया के तट पर मैं
जवाब देंहटाएंकिरन एक ढूँढ रही तल में
अनोखी छवि सुंदर चंचल
मचाए हलचल है जल में
वो बैठा दूर गगन में भी
बुलाता मुझको सस्वर है।।
वाह!!!
बहुत ही मनभावन लाजवाब गीत एकदम चाँद सा मन आँगन में चाँदनी बिखेरता....
बहुत बहुत बधाई जिज्ञासा जी लाजवाब सृजन हेतु।
आपकी इतनी सुंदर टिप्पणी ने रचना को सार्थक बना दिया,ब्लॉग पर आपके स्नेह की आभारी हूं आपको मेरा सादर नमन ।
हटाएंसुमन सितारों के....बहुत ही सुन्दर रचना, हार्दिक बधाई!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका।आपकी प्रशंसा को हार्दिक नमन एवम वंदन ।
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