कहाँ जलाऊँ, किसके आगे, कौन प्रभा को तरसे,
मन विह्वल, नैनों से आँसू, झिमिर झिमिर है बरसे,
क्यों है ऐसी दशा हृदय की, नहीं समझ पाती मैं ।।
हूक उठ रही है कुछ ऐसी,कोई दूर पुकारे,
घिरा तिमिर घनघोर विकट, वो मेरी राह निहारे,
अगन लगन एक आस लिए भागी दौड़ी जाती मैं ।।
चढ़ी हुई कुंडी द्वारे आवाज लगे भीतर से,
चकमक चारों ओर निहारूँ परिचित हूँ उस स्वर से,
खड़ी हुई हूँ देहरी पर, पर पहुँच नहीं पाती मैं ।।
खटखट करके बार बार उच्चार करे प्रिय कोई,
मिल न पाती हूँ उस स्वर से, बिलखि बिलखि मैं रोई,
विवश अधीर गिरी धरनी पर आज हुई जाती मैं
आखिर इतनी विहवलता, किसके खातिर और क्यूँ है ?
दीपों से एक दीप माँगकर लगी जलाती हूँ मैं ।।
दीपों के उजियारे में, एक दृश्य देख पाती मैं ।।
ईश्वर नश्वर साथ खड़े सब, खड़े पूर्वज मेरे,
कर्मों की हैं गठरी लादे, जग के बड़े चितेरे,
मन को कर आधीन, चरण में गिरती लग जाती मैं ।।
**जिज्ञासा सिंह**,
बहुत सुन्दर जिज्ञासा !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय सर 🙏🙏
हटाएंसच में , न जाने कितने पुरखों का अंश है, हमारे रक्त में, मस्तिष्क में।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार प्रवीण जी, आपकी को हार्दिक नमन ।
हटाएंबहुत सुंदर ♥️🌼
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार शिवम जी ।
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार(5-10-21) को "एक दीप पूर्वजों के नाम" (चर्चा अंक-4208) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
बहुत बहुत आभार कामिनी जी,चर्चा मंच में मेरी रचना को स्थान मिलना और चर्चा होना प्रसन्नता का विषय है । आपको मेरा सादर नमन और वंदन । बहुत बहुत शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंसामयिक सुंदर प्रस्तुति। पूर्वजों को भावपूर्ण आदरांजलि।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका अंकुर जी, आपकी प्रशंसा को सादर नमन ।
हटाएंबहुत सुन्दर प्रिय जिज्ञासा जी। पूर्वजोंके बनाए संस्कार-पथ पर अग्रसर होने से ही किसी व्यक्ति का व्यक्तित्व संवरता है। उनके विछोह की पीड़ा को कम करता है उनके प्रति श्रद्धा-भाव! पूर्वजों को दीप दान और तर्पण ही उनके प्रति स्नेह का सूचक है। बहुत ही सुन्दर श्रद्धासिक्त काव्यांजलि है आपकी।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार रेणु जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन ।
जवाब देंहटाएंपितृ पक्ष के पावन अवसर पर हृदय के सुंदर उद्गारों को शब्द दिए हैं आपने, हमारे पूर्वज हमें राह दिखाते हैं और इस सत्य से परिचित भी कराते हैं कि एक दिन कोई हमारे लिए भी दीप जलाएगा
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार अनीता जी, आपकी सार्थक प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन करती हूं ।
हटाएंआपका यह गीत निश्चय ही सराहनीय है जिज्ञासा जी। आख़िर इतनी विह्वलता किसकी ख़ातिर और क्यूं है? शायद इसके बाद एक पंक्ति और आनी थी जो लिखने से छूट गई। एक बार देख लीजिए। अच्छे गीत के सृजन हेतु अभिनन्दन आपका।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका जितेन्द्र जी, देखती हूं, जितेन्द्र जी, आपकी प्रशंसा को सादर नमन ।
हटाएंअत्यंत मार्मिक रचना!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार प्रिय मनीषा ।
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