हे मन मेरे ध्यान धरो
विचरण मन जब करे सघन वन
पात खोजता है वो निर्मल
क्षीण दिख रही है बगिया की
नई अंकुरित कोमल कोपल
फिर भी कलिका खिली हुई जो
उसका ही कुछ मान करो
एक दिशा और एक दशा में
चलते जाते कई अनावृत्त
रेखाओं का जाल सजाया
मूक हो गई पर आकृत
कितनी बार कहा है चुप हो
रेखाओं में रंग भरो
साध्य और साधन का लेखा
भूल भी जाओ आज जरा रे
विजय वहाँ की नियति में होगी
सौ सौ बार जहाँ हारे
ऐसी निजताओं के भूखे
बनो और सम्मान करो
वही जोगिनी यात्रा होगी
जिस पर चलते लाखों पग
अधम अगम सब योग्य दिखेगा
तृष्णा बन जब उड़े विहग
अरे उठो तुम तनिक जमी से
खुद को थोड़ा दान करो
अनदेखी अनचाही यात्रा
लगती बड़ी कठिन दुर्गम
विचलन मन का हो या तन का
मैं हूँ, मैं ही हूँ बस मम ।।
है मंतव्य घिरा मानुष मन
दूर जरा अभिमान करो
**जिज्ञासा सिंह**
चित्र साभार गूगल
अनदेखी अनचाही यात्रा
जवाब देंहटाएंलगती बड़ी कठिन दुर्गम
विचलन मन का हो या तन का
मैं हूँ, मैं ही हूँ बस मम ।।
है मंतव्य घिरा मानुष मन
दूर जरा अभिमान करो
गहन चिंतन लिए अति सुन्दर भाव प्रवण सृजन जिसमें जीवन सार समाया है ।
बहुत बहुत आभार मीना जी, आपकी सार्थक प्रतिक्रिया रचना को सार्थक बना गई ।आपको मेरा नमन और वंदन ।
हटाएंबहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंलेकिन वो अभिमान कैसे न करें?
उनके हिसाब से दुनिया तो उनकी तर्जनी पर ही टिकी है !
जी,सही कहा । पर अपना तो काम ही आगाह करना है, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन एवम वंदन ।
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार १९ नवंबर २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
जी,बहुत बहुत आभार श्वेता जी, आपका निमंत्रण सौभाग्य की बात है,
जवाब देंहटाएंको मेरी हार्दिक शुभकामनाएं ।
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(१९-११-२०२१) को
'प्रेम-प्रवण '(चर्चा अंक-४२५३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
अनीता जी, नमस्कार !
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच में रचना को स्थान मिलना मेरे लिए हर्ष का विषय है, आपका बहुत बहुत आभार और अभिनंदन । शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह ।
सुंदर प्रेरक भाव !
जवाब देंहटाएंसार्थक जीवन ज्ञके लिए सार्थक आह्वान करता अभिनव सृजन।
बहुत सुंदर जिज्ञासा जी।
बहुत बहुत आभार कुसुम जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन एवम ।
जवाब देंहटाएंBahut sundar aur shandaar
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार ।
हटाएंसुंदर अभिव्यक्ति,जिज्ञासा दी
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार ज्योति जी ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार अभिलाषा जी
हटाएंबहुत ही उम्दा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार प्रिय मनीषा ।
जवाब देंहटाएंइस बार कुछ हटकर लिखा आपने जिज्ञासा जी लेकिन अच्छा लिखा। काव्य-जगत में ऐसी सारगर्भित कविताओं का अपना स्थान है, अपना मूल्य है।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय जितेन्द्र जी, आपको मेरा नमन एवम वंदन ।
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