बूँद एक टपकी गगन से ।
बूँद एक टपकी नयन से ।।
बूँद का हर रूप मानव,
को परिष्कृत कर गया।।
बूँद गिरती जब सुमन पे ।
बूँद गिरती जब तपन पे ।।
बूँद का प्रारूप प्रकृति को,
सुसज्जित कर गया ।।
बूँद की भर के अँजूरी ।
बूँद हर पल है जरूरी ।।
बूँद का प्यासा समंदर,
खुद को गहरा कर गया ।।
बूँद है आकार जीवन ।
बूँद से साकार तन मन ।।
बूँद ही बनकर रुधिर हर,
धमनियों में बह गया ।।
बूँद की महिमा जो समझे ।
बूँद को प्रतिपल सहेजें ।।
बूँद को अमृत समझने,
वाला सागर बन गया ।
**जिज्ञासा सिंह**
गहन भावों से सुसज्जित अनुपम कृति ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार मीना जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन v।
हटाएंबहुत ही सुंदर प्रस्तुति,
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंबहुत बहुत आभार मधुलिका जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन एवम वंदन ।
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 10 नवंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
आपका बहुत बहुत आभार पम्मी जी, रचना के चयन के लिए आपका हार्दिक अभिनंदन, शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह ।
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (10-11-2021) को चर्चा मंच "छठी मइया-कुटुंब का मंगल करिये" (चर्चा अंक-4244) पर भी होगी!--सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
जवाब देंहटाएं--
छठी मइया पर्व कीहार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय शास्त्री जी,चर्चा मंच में रचना के चयन के लिए आपका हार्दिक अभिनंदन, शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह ।
जवाब देंहटाएंकोमल शब्दों से सुसज्जित बहुत ही सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार मनीषा जी ।
हटाएंबूंद को अमृत समझने वाला सागर बन गया। बहुत ख़ूब जिज्ञासा जी! बहुत सुंदर रचना है यह्।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार जितेन्द्र जी । आपकी प्रशंसा को हार्दिक नमन ।
हटाएंसही है, बूँद से ही जीवन का आरम्भ होता है और बूँद-बूँद से घड़ा भरता है, अनुपम सृजन!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार अनीता जी । आपकी प्रशंसा को हार्दिक नमन ।
हटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार ओंकार जी । आपकी प्रशंसा को हार्दिक नमन ।
हटाएंबहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार मनोज जी । आपकी प्रशंसा को हार्दिक नमन ।
हटाएंबूंद की महिमा जो समझे ।
जवाब देंहटाएंबूंद को प्रतिपल सहेजें ।।
बूंद को अमृत समझने,
वाला सागर बन गया ।
बहुत सुंदर पंक्तियाँ...
बहुत बहुत आभार विकास जी । आपकी प्रशंसा को हार्दिक नमन ।
जवाब देंहटाएंलाजबाब रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार उर्मिला जी ।
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका अंकित को ।
जवाब देंहटाएंबूँद बूँद, बन गये सरोवर,
जवाब देंहटाएंव्यापित फैले सकल धरा उर।
बहुत बहुत आभार आपका प्रवीण जी ।
जवाब देंहटाएंएक बूँद से तन मन!!!नयन सेबूँद टपकी मन से जुड़ी...लहू और जलबिंदु तन से जुड़ी...
जवाब देंहटाएंअद्भुत सृजन
वाह!!!
आपकी प्रशंसा ने कविता को सार्थक कर दिया,बहुत आभार सुधा जी ।
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