अमृत है हर बूँद


बूँद एक टपकी गगन से ।
बूँद एक टपकी नयन से ।।
बूँद का हर रूप मानव, 
को परिष्कृत कर गया।।

बूँद गिरती जब सुमन पे ।
बूँद गिरती जब तपन पे ।।
बूँद का प्रारूप प्रकृति को,
सुसज्जित कर गया ।।

बूँद की भर के अँजूरी ।
बूँद हर पल है जरूरी ।।
बूँद का प्यासा समंदर,
खुद को गहरा कर गया ।।

बूँद है आकार जीवन ।
बूँद से साकार तन मन ।।
बूँद ही बनकर रुधिर हर,
धमनियों में बह गया ।।

बूँद की महिमा जो समझे ।
बूँद को प्रतिपल सहेजें ।।
बूँद को अमृत समझने,
वाला सागर बन गया ।

**जिज्ञासा सिंह**

29 टिप्‍पणियां:

  1. गहन भावों से सुसज्जित अनुपम कृति ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बहुत आभार मीना जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन v।

      हटाएं
  2. उत्तर
    1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

      हटाएं
    2. बहुत बहुत आभार मधुलिका जी, आपकी प्रशंसनीय प्रतिक्रिया को हार्दिक नमन एवम वंदन ।

      हटाएं
  3. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 10 नवंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
    !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपका बहुत बहुत आभार पम्मी जी, रचना के चयन के लिए आपका हार्दिक अभिनंदन, शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह ।

      हटाएं
  4. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (10-11-2021) को चर्चा मंच        "छठी मइया-कुटुंब का मंगल करिये"  (चर्चा अंक-4244)       पर भी होगी!--सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    छठी मइया पर्व कीहार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

    जवाब देंहटाएं
  5. आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय शास्त्री जी,चर्चा मंच में रचना के चयन के लिए आपका हार्दिक अभिनंदन, शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह ।

    जवाब देंहटाएं
  6. कोमल शब्दों से सुसज्जित बहुत ही सुंदर रचना

    जवाब देंहटाएं
  7. बूंद को अमृत समझने वाला सागर बन गया। बहुत ख़ूब जिज्ञासा जी! बहुत सुंदर रचना है यह्।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बहुत आभार जितेन्द्र जी । आपकी प्रशंसा को हार्दिक नमन ।

      हटाएं
  8. सही है, बूँद से ही जीवन का आरम्भ होता है और बूँद-बूँद से घड़ा भरता है, अनुपम सृजन!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बहुत आभार अनीता जी । आपकी प्रशंसा को हार्दिक नमन ।

      हटाएं
  9. उत्तर
    1. बहुत बहुत आभार ओंकार जी । आपकी प्रशंसा को हार्दिक नमन ।

      हटाएं
  10. उत्तर
    1. बहुत बहुत आभार मनोज जी । आपकी प्रशंसा को हार्दिक नमन ।

      हटाएं
  11. बूंद की महिमा जो समझे ।
    बूंद को प्रतिपल सहेजें ।।
    बूंद को अमृत समझने,
    वाला सागर बन गया ।


    बहुत सुंदर पंक्तियाँ...

    जवाब देंहटाएं
  12. बहुत बहुत आभार विकास जी । आपकी प्रशंसा को हार्दिक नमन ।

    जवाब देंहटाएं
  13. बूँद बूँद, बन गये सरोवर,
    व्यापित फैले सकल धरा उर।

    जवाब देंहटाएं
  14. एक बूँद से तन मन!!!नयन सेबूँद टपकी मन से जुड़ी...लहू और जलबिंदु तन से जुड़ी...
    अद्भुत सृजन
    वाह!!!

    जवाब देंहटाएं
  15. आपकी प्रशंसा ने कविता को सार्थक कर दिया,बहुत आभार सुधा जी ।

    जवाब देंहटाएं