विभूति एक आत्मा ( गीता जयंती विशेष )

व्योम के गर्भ से प्रकाश एक प्रकट हुआ ,
हर तरफ अरुणिमा की कांति बिखर गई ।
रोम रोम छिद्र छिद्र सुधा रस भर गया ,
अक्षि समुख निर्मल तरंगिनी सी बह गई ।।

धार एक फूटकर वायु में ज्यों मिली ,
सुप्त सी धमनियों में श्वांस दौड़ने लगी ।
दान में मिली हुई विभूतियों में आत्मा , 
बुद्धि और शक्ति को तुला में तौलने लगी ।।

बुद्धि का विकास और शक्तियों का संतुलन, 
मानव की श्रेष्ठता को शिखर तलक ले गया ।
शीर्ष पर विराजमान देखता वो स्वयं को ,
चिन्तना का अमृत तो दूर ही छिटक गया ।।

अंतक्षण में व्याकुल निकलने को प्राण है,
पकड़ धमनियों को श्वांस खुद को रोकने लगी ।
घर्षणा की पीड़ा से व्याकुल है आज मन ,
प्राणवायु थककर के हाथ जोड़ने लगी ।।

एक बार, एक बार कहने लगा एक बार ,
अब तो मिल लेने दो, उनसे बस एक बार ।
जान नहीं पाया हूँ, मिल भी नहीं पाया हूँ  ,
देख नहीं पाया हूँ जिनको मै एक बार ।।

मिलने को उत्सुक है, चंचल अधीर जीव, 
त्रस्त, संत्रस्त, अपत्रस्त हुआ जाता है ।
अब किस की देहरी पे शीश मैं झुकाऊँ जाके ,
पूरा ब्रम्हाण्ड आज शून्य नज़र आता है ।।

समझ नहीं पाया मैं महिमा अपार कोटि ,
जिनके ही छाँव तले जन्मा था जीव ये ।
जिनके ही हाथों में जीवन कठपुतली था , 
जिनके ही हाथ पड़ी सृष्टि की नींव ये ।।

एक क्षण एक घड़ी एक पल का जीवन ये , 
और मैं सहस्रों में खुद को जोड़ता रहा । 
आज उसी एक पल को शाश्वत बनाना है ,
जिस पल को आजीवन मैं हूँ छोड़ता रहा ।।

गगन दुंदुभी बजी कोलाहल थम गया ,
अभ्यागत चल पड़े अर्चना के सुर सुन के ।
देख कर विराट छवि,  नैनों की ज्योति जगी, 
जोड़ लिए कर दोनो , बैठ गया चरणनन के ।।

कुछ तो अधूरा है कुछ है सम्पूर्ण आज , 
मन में अपार शक्ति गहन मंत्रणा में लीन ।।
देख लो वो आ गए हैं चल कर के द्वार मेरे ,
आज मुझे होना है उनमें ही खुद विलीन ।।

**जिज्ञासा सिंह** 

14 टिप्‍पणियां:

  1. प्रिय जिज्ञासा जी, विषाद योग से विराट रुप दर्शन तक मानवता के इतिहास में एक अमर उपदेश की रचना हुई। अर्जुन के मन में यही भाव उपजे होंगे जिन्हें आपने रचना रुप में बांधा है। विषाद में आकंठ निमग्न अर्जुन को कैसी अनुभूति हुई होगी जब सदैव सखा रुप में अपने अंग-संग रहने योगेश्वर श्रीकृष्ण को, अपनी दिव्यदृष्टि से दिव्य रूप में देखा होगा। अर्जुन के व्याकुल चित्त को सचमुच व्याकुलता से छुटकारा मिल पाया होगा तभी सृष्टि का सबसे। भयंकर युद्ध महाभारत हुआ होगा। आज की रचना में आपकी आध्यात्मिकता और विद्वता दोनों का भरपूर दोहन हो, सुमधुर संगम भी हुआ है। आपके लेखनी को नमन करते हुए आपको गीता जयंती की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं 🙏🌷🌷💐💐

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    1. मेरी रचना की इतनी सुंदर सारगर्भित समीक्षा पढ़कर अभिभूत हूं , जो कुछ भी मैंने लिखा है, कुछ विषय पर आपका गहन दृष्टिकोण मेरे मन को छू गया आप जैसी विदुषी मेरी सखी है,मेरा अहोभाग्य !आप को मेरा हार्दिक नमन और वंदन 🙏💐

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  2. कुछ तो अधूरा है कुछ है सम्पूर्ण आज ,
    मन में अपार शक्ति गहन मंत्रणा में लीन ।।
    देख लो वो आ गए हैं चल कर के द्वार मेरे ,
    आज मुझे होना है उनमें ही खुद विलीन ।।
    👌👌👌👌🙏

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  3. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (20-12-2021 ) को 'चार दिन की जिन्दगी, बाकी अंधेरी रात है' (चर्चा अंक 4284) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:30 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  4. आपका बहुत बहुत आभार रवीन्द्र सिंह यादव जी, रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद ।शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह 🙏💐

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  5. बहुत सुन्दर जिज्ञासा !
    गीता का सार तुमने चंद पंक्तियों में भर दिया है.
    योगिराज श्री कृष्ण का और वेद व्यास का आशीर्वाद तुम्हें अवश्य मिलेगा.

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    1. आपका आशीर्वाद मेरे लिए गुरुतुल्य है,आपको मेरा सादर नमन एवम वंदन 🙏💐

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    1. आपकी प्रशंसा अनमोल है । रचना सार्थक हुई ।आपको नमन वंदन ।

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  7. बहुत बहुत आभार ज्योति जी, आप को मेरा नमन और वंदन ।

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