पथ के अनुगामी



वटवृक्ष घनी छाया का जब
अनुभव अन्तर्मन सीख चले
शीतलता के उस आँगन में
तुम दीप जलाना आज प्रिये ।।

नैनों से झरती एक बूँद जब
सिंचित कर दे मरुभूमि
गीली रेतों के प्रांगण में
तुम पौध लगाना आज प्रिये ।।

अंधी संकियारी कुइंयाँ में
उतराते मन के घट लुढ़कें
गांठों की कड़ियाँ ढीली कर
तुम जल भर लाना आज प्रिये ।।

चहुँ ओर तिमिर घनघोर घना
है दूर मयूख कहीं नभ में
उस नवल किरन की छाँव तले
तुम बढ़ती जाना आज प्रिये ।।

भौतिकता औ विलास छादित
जब चकाचौंध चमके दृग में
अनुशीलन कर गहरी नदिया
की धार बहाना आज प्रिये ।।

जग का, मन का औ जीवन का
अवरुद्ध विषम हर मार्ग दिखे
फिर मातुपिता के चरणों में
जाकर झुक जाना आज प्रिये ।। 

**जिज्ञासा सिंह**

38 टिप्‍पणियां:

  1. आध्‍यात्‍म में डूबा प्रेम ...अद्भुत अभिव्‍यक्‍ति रही आपकी जिज्ञासा जी

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    1. बहुत बहुत आभार अलकनंदा जी । आप को मेरा नमन और बंदन ।

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  2. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ।।प्रेरक रचना ।

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    1. आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय दीदी, आपके मनोबल बढ़ाते दो शब्द मेरे लिए प्रेरणा हैं ।

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  3. चहुँ ओर तिमिर घनघोर घना
    है दूर मयूख कहीं नभ में
    उस नवल किरन की छाँव तले
    तुम बढ़ती जाना आज प्रिये ।।
    .....वाह! बहुत सुंदर!!

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    1. बहुत-बहुत आभार आदरणीय विश्व मोहन जी । आपकी मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया के लिए नमन और वंदन ।

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  4. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (23-1-22) को "पथ के अनुगामी"(चर्चा अंक 4319)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

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  5. कामिनी जी नमस्कार 👏
    "पथ के अनुगामी" रचना को चर्चा के लिए आमंत्रित करना मेरे लिए सौभाग्य और खुशी का क्षण है, यह खुशी देने के लिए आपका जितना भी आभार करूं कम है । प्रिय सखी का बहुत-बहुत अभिनंदन करती हूं आदर सहित..जिज्ञासा सिंह💐💐

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  6. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर रविवार 23 जनवरी 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  7. "पांच लिंकों का आनन्द में" रचना के चयन के लिए आपका बहुत बहुत
    आभार आदरणीय सर । आपको मेरा सादर अभिवादन ।

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  8. बहुत सुन्दर सन्देश!
    ॐ गणेशाय नमः !
    मात-पिता के चरणों में जिसे सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड दिखता है !

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  9. सांगोपांग!!
    रचना आदि से अंत तक कोमल प्रेरक भावों का खजाना है, अभिनव लक्षणा और व्यंजना से सजी इस रचना की प्रशंसा के शब्द नहीं है मेरे पास।
    सचमुच अद्भुत !!
    हर बंध उत्कृष्ट प्रेरक ।

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    1. आपकी प्रशंसा भरी प्रतिक्रिया उत्साह बढ़ाने के साथ साथ नव सृजन का आधार बनती है, आपको मेरा नमन और वंदन ।

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  10. बहुत ही प्रेरणादायक सृजन!
    एक एक पंक्ति बहुत ही उम्दा व सरहानीय है!
    वाकई काबिले तारीफ 👏👏

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  11. वाह!क्या बात है ,बेहतरीन सृजन ।

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    1. बहुत बहुत आभार शुभा जी । आपकी प्रशंसा को सादर नमन ।

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  12. आदरणीया जिज्ञासा जी, उत्कृष्ट रचना! अनुपम भाव! हृदय को स्पंदित करता शब्द संयोजन!
    अंधी संकियारी कुइंयाँ में
    उतराते मन के घट लुढ़कें
    गांठों की कड़ियाँ ढीली कर
    तुम जल भर लाना आज प्रिये ।।

    चहुँ ओर तिमिर घनघोर घना
    है दूर मयूख कहीं नभ में
    उस नवल किरन की छाँव तले
    तुम बढ़ती जाना आज प्रिये ।।
    साधुवाद!--ब्रजेंद्रनाथ

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    1. आप जैसे विद्वतजन की सराहना बहुत सुखद अनुभूति देती है,आपकी प्रशंसा मेरे नव सृजन का आधार बनेगी । आप को मेरा नमन और बंदन ।

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  13. उत्तर
    1. बहुत-बहुत आभार कविता जी । ब्लॉग पर आप की प्रशंसा को नमन और वंदन ।

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  14. भौतिकता औ विलास छादित
    जब चकाचौंध चमके दृग में
    अनुशीलन कर गहरी नदिया
    की धार बहाना आज प्रिये... वाह!बहुत ही सुंदर सृजन।
    सादर

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    1. आपकी प्रशंसा को हार्दिक नमन और वंदन प्रिय अनीता जी ।

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  15. बहुत ही सुन्दर सार्थक रचना सखी

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