रीता दीपक

मैं खूंट खूंट तिल तिल
घटती दियना की बाती
हूँ सघन रैन जलती 
उँजियारा कर न पाती ।

पड़ा अकाल धरनि क्लेशित
है शुष्क पड़ी
काले नभ पर उजली सेमल
मोती सरिस जड़ी
रीता दीपक हाथ,
दौड़ मैं नभ तक जाती 
हूँ सघन रैन घटती 
उँजियारा कर न पाती ।।

विकट कोस कुम्हार
गई दियना मैं लाई
उद्भव कितना कठिन
दीप जब जली सलाई
अंतर्दुनिया मेरी जाने
जग को क्या बतलाती
हूँ सघन रैन घटती 
उँजियारा कर न पाती ।।

देखूँ मैं चहुओर
इसी दीए की महिमा
कीर्ति और अनुराग
लिए फैली है गरिमा
बस मेरे ही द्वार
फड़ककर ये बुझ जाती ।।
हूँ सघन रैन घटती 
उँजियारा कर न पाती ।।

**जिज्ञासा सिंह**

28 टिप्‍पणियां:

  1. अंतिम पंक्तियाँ बहुत ही मर्मस्पर्शी हैं।

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  2. देखूँ मैं चहुओर
    इसी दीए की महिमा
    कीर्ति और अनुराग
    लिए फैली है गरिमा
    बस मेरे ही द्वार
    फड़ककर ये बुझ जाती ।।
    हूँ सघन रैन घटती
    उँजियारा कर न पाती ।।
    बेहद हृदयस्पर्शी रचना जिज्ञासा जी।

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    1. बहुत बहुत आभार अनुराधा जी,मनोबल बढ़ाती प्रतिक्रिया का हार्दिक स्वागत है 👏💐

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  3. मन की उदासी भावों में परिवर्तित हो रही है जैसे ... एक रीते पन का र्ह्सास ... न कर पाने का भाव ...

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    1. सार्थक प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार आपका ।

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  4. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१२ -०२ -२०२२ ) को
    'यादों के पिटारे से, इक लम्हा गिरा दूँ' (चर्चा अंक-४३३९)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  5. चर्चा मंच में रचना के चयन के लिए आपका हार्दिक आभार एवम अभिनंदन प्रिय अनीता जी ।मेरी हार्दिक शुभकामनाएं ।

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  6. मैं खूंट खूंट तिल तिल
    घटती दियना की बाती
    हूँ सघन रैन जलती
    उँजियारा कर न पाती ।

    दीपक की भी अपनी व्यथा है जो कभी कभी अपनी व्यथा ही लगती है, बहुत ही सुन्दर सृजन जिज्ञासा जी 🙏

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  7. रचना को विस्तार देती प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत बहुत आभार सखी ।

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  8. बाती बिन दिया का क्या अस्तित्व लेकिन नाम दिया का ही होता है... ठीक मानुस में आत्मा की तरह।
    बहुत सुंदर रचना।

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  9. मानव जीवन और दीपक के अस्तित्व की साम्यता के भाव को पोषित करती मर्मस्पर्शी कृति ।

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  10. देखूँ मैं चहुओर
    इसी दीए की महिमा
    कीर्ति और अनुराग
    लिए फैली है गरिमा
    बस मेरे ही द्वार
    फड़ककर ये बुझ जाती ।।
    हूँ सघन रैन घटती
    उँजियारा कर न पाती ।।
    बाती का जलना दीपक के नाम
    बहुत ही सार्थक एवं सारगर्भित
    लाजवाब सृजन
    वाह!!!

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  11. बहुत बहुत आभार सुधा जी । आपकी सार्थक प्रतिक्रिया ने रचना को सार्थक कर दिया ।

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  12. जलती तो बाती है लेकिन महिमा दीपक की ही होती है ।इस रचना में बाती के मर्म को छुआ है ।

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  13. सच में बाती जलकर दीपक को गरिमा प्रदान करती है पर सब कहते हैं दीया जल रहा। अंतस में व्याप्त अंधकार के कारण, भीतर उजास की सम्भावना शून्य सरीखी ही है। मार्मिक रचना के लिए आभार और शुभकामनाएं।

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  14. देखूँ मैं चहुओर
    इसी दीए की महिमा
    कीर्ति और अनुराग
    लिए फैली है गरिमा
    बस मेरे ही द्वार
    फड़ककर ये बुझ जाती ।।
    हूँ सघन रैन घटती
    उँजियारा कर न पाती ।।
    हृदय तल को स्पर्श करती हुई
    बहुत ही भावात्मक सृजन!!
    कुछ दिनों से कुछ कारणवश ब्लॉग पर कम आना होता है!

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  15. बाती के मर्म के9 छूती बहुत सुंदर रचना, जिज्ञासा दी।

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  16. देखूँ मैं चहुओर
    इसी दीए की महिमा
    कीर्ति और अनुराग
    लिए फैली है गरिमा
    बस मेरे ही द्वार
    फड़ककर ये बुझ जाती ।।
    हूँ सघन रैन घटती
    उँजियारा कर न पाती ।।,,,, मार्मिक रचना,आदरणीया शुभकामनाएँ,

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  17. बहुत बहुत आभार आपका मधुलिका जो ।

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