भारी जगी जगाई आँखें
नींद लिए बौराई आँखें
काम ढूँढती दर दर भटकी
गुदड़ी की ये जाई आँखें
रोटी मिली प्याज़ की खातिर
जगह जगह भटकाई आँखें
मोल तोल का भार लिए
झुकती और झुकाई आँखें
मचलीं जब जब नादानी में
बन अंगार दिखाई आँखें
आज तलक बस एक बार ही
खुद से गई उठाई आँखें
माँ की उँगली स्नेह का काजल
भरकर गई लगाई आँखें ।।
**जिज्ञासा सिंह**
बहुत सुंदर आँखों के निमिष मात्र झूकने उठने में कितनी अभिव्यक्ति होती है ।
जवाब देंहटाएंअभिनव सृजन।
बहुत बहुत आभार कुसुम जी ।
हटाएंआपकी प्रतिक्रिया को नमन करती हूँ ।
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (13-04-2022) को चर्चा मंच "गुलमोहर का रूप सबको भा रहा" (चर्चा अंक 4399) पर भी होगी!
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' --
आदरणीय शास्त्री जी, प्रणाम!
हटाएंरचना को चार ha मंच में शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार।
मेरी हार्दिक शुभकामनाएं ।
बHउत सुंदर।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार ज्योति जी ।
हटाएंबहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार अनुराधा जी ।
हटाएंआँखों की गहराई और भिन्न कार्यकलापों को बखूबी दर्शाया है आपने इस सुंदर कृति में
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार दीदी ।
जवाब देंहटाएंआँखों का सजीव रेखा चित्र खींचने में पूर्ण सफलता की हम प्रशंसा करते हैँ.
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय ।
जवाब देंहटाएंआँखों के क्रियाकलापों के साथ भावपूर्ण सृजन ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार मीना जी ।
हटाएंवाह जिज्ञासा ! गुदड़ी की ये जाई आँखें' का यह अभिनव-प्रयोग दिल को छू गया !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय सर।
जवाब देंहटाएंआपकी प्रशंसा को नमन और वंदन।
बालमन के जीवन संघर्षों को कितनी बारीक नजरों से पढ़ा है आपने
जवाब देंहटाएंकमाल
बेहद भावपूर्ण और प्रभावी गज़ल
बधाई
बहुत बहुत आभार ज्योति खरे जी ।
जवाब देंहटाएंआपकी प्रशंसनीय टिप्पणी का हार्दिक स्वागत ।
निशब्द हूँ... आपकी रचना पढ़ कर!
जवाब देंहटाएंबहुत आभार प्रिय मनीषा।
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