उनकी राहें बड़ी कठिन हैं ।
दूर गए परदेस सजाने मीठे सपने
चौराहे पे खड़े,
आज मुख हुआ मलिन है ॥
पीठ पे गठरी भरी गृहस्थी
एक झोले में जीवन,
काम मिले या लौटें वापस
खड़े विचारें हैं मन,
अनथक चलता है ये राही
थकता न पल छिन है ॥
लाख फाइलें चलीं, तरक्की होगी
होंगी मीनारें भी इनके नाम,
गारा तसला मुकुट सरीखा होगा
ऊंचे होंगे अब इनके भी दाम,
जोड़ तोड़ गठजोड़ बनेगा
आज काम का दिन है ॥
दस आँखें हैं दूर कहीं पर
निशदिन साँझ अगोरें
आहट की अकुलाहट में
हैं दिखते माथ सिकोरे
आस और विश्वास
साधता वो अनगिन है ॥
उनकी राहें बड़ी कठिन है ॥
**जिज्ञासा सिंह**
जिज्ञासा दी, सच मे मजदूरों की राहै बहुत ही कठीन है। उनकी कठिनाइयोंका बहुत सुंदर वर्णन।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार ज्योति जी ।आपकी सराहना को हार्दिक नमन।
हटाएंप्रिय जिज्ञासा जी,श्रमवीर के सम्मान में लिखी गई भावपूर्ण प्रस्तुति चिन्तनपरक है।राष्ट्र और समाज की अर्थ व्यवस्था के कर्णधार ये मजदूर संकल्प और संघर्ष के पर्याय बन कर अपने मजबूत कांधों पर इसे थामे हुए हैं।अस्थिर जीवन में भी खुशी मे गीत गाते और जो है- जिस हाल में भी हों-- उसे खुले मन से स्वीकारते ये श्रमिंक सभी के लिए एक बड़ी प्रेरणा है।इन्हें सम्मान देना सभी का प्रमुख कर्तव्य है।सुन्दर रचना के लिए बधाई और शुभकामनाएं।सभी श्रमवीरों को सादर नमन 🙏❤❤🌺🌺
जवाब देंहटाएंआपकी सारगर्भित समीक्षात्मक प्रतिक्रिया के लिए आपको मेरा नमन और वंदन ।
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार 02 मई 2022 को 'इन्हीं साँसों के बल कल जीतने की लड़ाई जारी है' (चर्चा अंक 4418) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
चर्चा मंच में रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार और अभिनंदन रवींद्र सिंह यादव जी।मेरी हार्दिक शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंपीठ पे गठरी भरी गृहस्थी
जवाब देंहटाएंएक झोले में जीवन,
काम मिले या लौटें वापस
खड़े विचारें हैं मन,
अनथक चलता है ये राही
थकता न पल छिन है... हृदयस्पर्शी सृजन।
सादर
सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत बहुत आभार।
हटाएंप्रतिक्रियाएं लेखन का संबल हैं, स्नेह बनाए रखें।
बहुत ख़ूब ! मज़दूर की दुर्दशा का यथार्थवादी चित्रण !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय सर।
हटाएंसत्य वर्णित करता सारगर्भित सृजन, बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत आभार ।
हटाएंलाख फाइलें चलीं, तरक्की होगी
जवाब देंहटाएंहोंगी मीनारें भी इनके नाम,
गारा तसला मुकुट सरीखा होगा
ऊंचे होंगे अब इनके भी दाम,
जोड़ तोड़ गठजोड़ बनेगा
आज काम का दिन है ॥
उपेक्षा के दौर से गुजर रहे मजदूर का कोई माईबाप नहीं,वह आश्वासनों को घूंट घूंट पी रहा है.
सर्वहारा वर्ग की आर्थिक और मानसिक स्थिति का वास्तविक चित्रण किया है आपने.
अद्भुत सृजन
रचना के मर्म तक पहुंच,सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपको नमन और वंदन।
हटाएंलाख फाइलें चलीं, तरक्की होगी
जवाब देंहटाएंहोंगी मीनारें भी इनके नाम,
गारा तसला मुकुट सरीखा होगा
ऊंचे होंगे अब इनके भी दाम,
जोड़ तोड़ गठजोड़ बनेगा
आज काम का दिन है ॥
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बेहद मर्मस्पर्शी सृजन जिज्ञासा जी।
एक सजीव रेखाचित्र मन द्रवित कर रहा।
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सस्नेह
सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत बहुत आभार श्वेता जी ।
हटाएंबहुत बढियां सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार भारती जी ।
जवाब देंहटाएंबेहद मर्मस्पर्शी सृजन जिज्ञासा जी
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