क्या हुआ क्या रह गया ?
कौन क्या-क्या कह गया ?
जितने मुँह उतनी कथन,
मत किसी पर कान दो ।
सत्र पर बस ध्यान दो ॥
जिंदगी का लघु या विस्तृत सत्र ये,
पालता है शत्रु लाखों मित्र ये ।
क्षणिक क्षण में रूप बदले रंग भी,
पग पे पग है रख रहा सर्वत्र ये ॥
खुद ही प्रेरक,खुद ही बनता प्रेरणा,
बस इसे उत्थान दो ॥
बोया अपना काटना है, है नियम,
बूझकर अब हर उठाना है कदम ।
भार लेकर शीश पर चलना पड़ेगा,
वक्त करता है नहीं कोई रहम ॥
सोच को करना परिष्कृत है अभी,
रहने उसे गतिमान दो ॥
एक दिन और एक दिन बीते सदी,
रोक न पाया कोई बहती नदी ।
बह रही थी,बह रही अपनी ही लय में,
कीच कचरे से भरी छाती लदी ॥
धार पकड़ो उस नदी का बह चलो,
मार्ग की पहचान दो ॥
**जिज्ञासा सिंह**
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (25-05-2022) को चर्चा मंच "पहली बारिश हुई धरा पर, मौसम कितना हुआ सुहाना" (चर्चा अंक-4441) पर भी होगी!
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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बहुत बहुत आभार आदरणीय शास्त्री जी।
हटाएंमेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए आपका हार्दिक अभिनंदन।
मेरी हार्दिक शुभकामनाएं।
एक दिन और एक दिन बीते सदी,
जवाब देंहटाएंरोक न पाया कोई बहती नदी ।
बहुत सुंदर..
सादर..
आपकी सार्थक प्रतिक्रिया ने रचना को सार्थक कर दिया। बहुत आभार आपका दीदी
हटाएंबस इसे उत्थान दो ...सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंएक दिन और एक दिन बीते सदी,
जवाब देंहटाएंरोक न पाया कोई बहती नदी ।
बह रही थी,बह रही अपनी ही लय में,
कीच कचरे से भरी छाती लदी ॥
धार पकड़ो उस नदी का बह चलो,
मार्ग की पहचान दो ॥
क्या बात है प्रिय जिज्ञासा जी
बहुत भारी पड़ेंगी किसी दिन अपनी गलतियाँ| सस्नेह
आपका बहुत बहुत आभार ।
जवाब देंहटाएं"बोया अपना काटना है, है नियम,
जवाब देंहटाएंबूझकर अब हर उठाना है कदम ।"
वाह! बहुत बढ़िया संदेशपरक!!! पूर्ण लेखनी धर्म का निर्वाह!!! बधाई!!
बहुत बहुत आभार आपका।
हटाएंप्रेरित करतीं सुंदर पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका ।
हटाएंसुंदर संदेश देती रचना, जिज्ञासा दी।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका ज्योति जी ।
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