कि बेटी चाहती है अब !

पिता जी सोच कुछ लेना 

तभी टीका मेरा करना 

देखकर धन  दौलत 

मोह और माया में  पड़ना 


कि मैं अम्मा के जैसे 

शीश  अपना झुकाऊँगी 

 दादी की तरह दिन रात 

मैं घूँघट निकालूँगी 

मेरे खुद्दार मन का 

मान  सम्मान तुम रखना 


 ये कहना मेरे ससुराल में

कि बेटियाँ हैं ग़ैर 

जो जाती मायके से फिर 

बतातीं बस ख़ुशी  खैर 

मैं वो बेटी हूँ जो है जानती

 हर भाव को पढ़ना 


मैं इतना जानती हूँ 

बाप को इज़्ज़त बड़ी प्यारी 

उसी इज़्ज़त की ज़िद पर

बेटियाँ जाती रहीं मारी 

हमें तो अश्रुओं में डूबकर

आया सदा बचना 


मेरे मन के सलोने भाव 

तुमसे और माँ से हैं

मेरे विश्वास की पूँजी

जुड़ी ही मायके से हैं

अतः ये ध्यान रखना कि

नज़र को  पड़े गिरना 


वहाँ मैं संस्कारों का

तुम्हारे मान रक्खूँगी 

मूल्य का निज के जीवन में

नित्य अवधरण कर लूँगी 

मगर मिथ्या अनर्गल 

बात पर मुझको नहीं झुकना  


तुम्हें मैं सच बताऊँ झेलना

मुझको नहीं अब कुछ 

उसूलों मान्यताओं का

खजाना लग रहा है तुच्छ 

कि बेटी चाहती है अब 

समय के साथ ही चलना 


पितृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ

**जिज्ञासा सिंह**

36 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीया जिज्ञासा जी,हमारी पीढ़ी ने तो यही किया है।
    बेटी यदि पिता का मान-सम्मान होती है तो बेटी के लिए भी पिता उसका गुरुर होता है।
    पितृदिवस की हार्दिक शुभकामनायें

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    1. जी, सही कहा आपने कामिनी जी ।आपकी प्रशंसा को नमन और वंदन।

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  2. आज की बेटियों की सोच ही समाज में बदलाव ला रही है और लाएगी ...... सुन्दर पोस्ट .

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  3. समय के साथ चल कर ही बेटियां सकारात्मक बदलाव ला सकती है। बहुत सुंदर सृजन, जिज्ञासा दी।

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    1. बहुत बहुत आभार ज्योति जी, आपकी प्रशंसा को नमन और वंदन।

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  4. आपकी लिखी रचना सोमवार 20 जून 2022 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

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    1. "पाँच लिंकों का आनंद" में रचना का चयन मुझे बहुत हर्ष दे गया । आपका हार्दिक आभार और अभिनंदन आदरणीय दीदी।

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  5. वाह! बहुत सुंदर अभिव्यक्ति!!!

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  6. प्रिय जिज्ञासा जी, सदियों से बेटियों के मन की आवाज़ को हर बाबुल ने अनदेखा किया। किसी समय संस्कारों और परम्परागत सीखों की पोटली उसे थमा, किसी भी कीमत पर ससुराल की देहरी ना लाँघने की ताकीद के साथ विदा किया जाता था।किसी बुरे वक्त में मायके की ओर आने के रास्ते बंद थे।ना जाने कितनी बेटियाँ अपने प्यारे बाबुल और परिवार की झूठी शान के लिए बलिदान हो गईँ।पर आज की बेटी संस्कारी है तो शिक्षित भी।वह नहीं चाहती झूठी शान और परम्पराएं निभाना, जो समय के साथ जीर्ण-शीर्ण हो बिखर चुकी हैं।वह पितृसत्ता से गुहार नहीं लगाती ,अपने स्वाभिमान के लिए कानूनी और सामाजिक सभी अधिकारों से लैस है। वह नहीं जीना चाहती एक खंडित मूल्यों और संदिग्ध विश्वास के साथ।आपने एक स्वाभिमानी बिटिया के भावुक मन की कोमल भावनाओं को बहुत ही सहजता से दर्शाया है रचना में।मैं इसे पढ़कर भावुक हो गई।बहुत ही प्यारा चित्र लगाया है आपने।पिताजी को मेरी ओर से प्रणाम जरुर पहुँच दें।बिटिया तो भाग्यशाली है ही कि उनकेसर पर पिताजी की अनमोल छाँव है पर पिताजी भी कम भाग्यशाली नहीं जिन्हें इतनी विचारशील और यशस्वी बेटी मिली है,जो समय की नब्ज़ को पहचान समस्त नारियों के अनकहे भावों को शब्द देना जानती है।ढेरों शुभकामनाएं और प्यार आपको ♥️♥️🌹🌹

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  7. प्रिय खी सच कहूं तो हमारी पीढ़ी ने तो पिता और सारे ही मायके वालों के इन विचारों को खूब झेला है ।अब थोड़ी परिस्थितियां बदल रही हैं। एक स्वस्थ मानसिकता के साथ समाज में, परिवार में रूढ़ियों और अमानुषिक परम्पराओं का विरोध जरूरी है ।
    आपकी प्रतिक्रिया कई बार पढ़ी ।लगा जैसे कोई आलेख पढ़ रही हूं आपके विद्वत विचार हमेशा जीवन के लिए संजीवनी होते है आपकी हर बात से सहमत हूं।
    आपके लिए मेरी शुभकामनाएँ 🌷🌷💝💝

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  8. उत्कृष्टता के नवीन शिखरों को स्पर्श करता हुआ गीत रचा है आपने जिज्ञासा जी। अनंत शुभकामनाएं, निस्सीम अभिनंदन, बारंबार वंदन।

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    1. आपका बहुत बहुत आभार जितेन्द्र भाई।
      ब्लॉग पर आके मेरा मनोबल बढ़ाने के लिए आपका तहेदिल से शुक्रिया ।

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  9. बेटी चाहती है अब समय के साथ ही चलना....।
    बेटियों के स्वाभिमान के लिए आह्वान करती अत्यंत भावपूर्ण धाराप्रवाह सुंदर अभिव्यक्ति जिज्ञासा जी।
    -----
    बेटियाँ अपने स्वाभिमान से समझौता नहीं करेंगी
    सुख-शांति की नाम पर अनर्गल जुर्माना नहीं भरेंगी
    समय के साथ चलना होगा वरना पिछड़ना निश्चित है
    पुरखिनों की तरह बेटियाँ बेवजह प्रताड़ना नहीं सहेंगी।
    ------
    सस्नेह।

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    1. बहुत सही प्रिय सखी ।
      हम कुछ भी कह लें। परंतु हमे हमारे मायके के संस्कार कभी कभी इतना पीछे ले जाते हैं कि ससुराल को समझने में हमारे जीवन का कीमती साल बीत जाता है । झुकने, झुकाने वाले वे अनर्गल संस्कार हमारी चेतना को खत्म कर देते हैं ऐसे कई उदाहरण अपने आसपास देखती हूं, मन आहत होता है अपने लिए भी होता है । बहुत ही गुणी लड़कियां असमय एक बूढ़ी स्त्री में बदल जाती हैं। एक ऐसा ही दृश्य देखा मैने कि मेरी रिश्तेदार उनकी शादी के पैंतीस साल बाद याद दिलाया कि आप तो सितार बजाती थीं तब वे चौंकी कि अरे हां। अब उन्हें स औ रे नहीं आता सितार की कौन कहे। जीवन केवल बेलन चलाने में बीत गया, पति की मृत्यु हो गई बाकी बचा रोने में बीत जाएगा ।
      कहने का तात्पर्य है कि एक बालिका को मजबूती से अपने अधिकारों से परिपूर्ण होने का संस्कार भी देना चाहिए । जिससे जीवन में अपने लिए लड़ सके ।
      आप सबका साथ संबल है, स्नेह बनाए रखें। बहुत आभार आपका प्रिय श्वेता जी । मेरी हार्दिक शुभकामनाएं।

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  10. बहुत सुन्दर भाव हैं जिज्ञासा !
    तुमने बाप की इज्ज़त का ख़याल रखने के नाम पर बेटी को ससुराल में ज़ुल्म सहते रहने के खिलाफ़ सही आवाज़ उठाई है.
    आज की बेटी समर्थ है और आत्मविश्वास से भरी है लेकिन फादर्स डे पर बेटी को अपने पिता के लिए भी कुछ करने का संकल्प लेना चाहिए.
    मेरी दृष्टि में बेटी के अधिकारों की बात करने के साथ उसके कर्तव्यों की बात भी होनी चाहिए.

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    1. आपकी बात सही है । मैंने शुरुआती दिनों में केवल पिता के कर्तव्य और मान पर ही कई कविता लिखी ।पहली बार अपनी बात कही है । अपने पिता की कहूं तो मुझे तो उनसे बड़ा त्यागी, संतोषी, धैर्यवान, एक सुंदर बच्चों जैसा मन कहीं नहीं दिखा। मेरी उनसे घंटों बात होती है, मैं हमेशा उनसे गांव शहर की हर बेटी के अधिकारों की बात बचपन से करती हूं । उन्होंने बहुत से सामाजिक कार्य लिए हैं।उनका अनुभव मेरे लिए संजीवनी है ।
      आज जब उनके साथ बैठती हूं तो छूटे हुए अधिकारों की बात होती है, और इस कविता का विषय उन्हीं विमर्शों पर आधारित है ।
      पिता दिवस पर मेरी हर पिता से ये विनती है ।
      अगली कविता उनके त्याग और समर्पण पर ।
      आपको मेरा सादर अभिवादन,नमन और वंदन ।

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  11. बहुत ख़ूब जिज्ञासा.
    फ़ादर्स डे पर जागरूक बेटी की अपने अधिकारों के लिए खड़े होने की बात सही है पर अपने पिता के प्रति बेटी के भी कुछ कर्तव्य हैं, उन्हें उसे भूलना नहीं चाहिए.

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    उत्तर
    1. सादर आभार आपका ।
      अगली कविता आप जैसे और पिता जी जैसे मूल्यवान पिता को समर्पित होगी ।
      आपको मेरा प्रणाम !

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  12. बेटियां अब आगे बढ़ना चाहती है हमारे वाला वक्त अब बीत गया। सुंदर रचना

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  13. बहुत सुन्दर और सार्थक सृजन । हार्दिक शुभकामनाएँ ।

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  14. बहुत सुन्दर और सार्थक सृजन । हार्दिक शुभकामनाएँ जिज्ञासा जी!

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  15. तुम्हें मैं सच बताऊँ झेलना

    मुझको नहीं अब कुछ ।

    उसूलों मान्यताओं का

    खजाना लग रहा है तुच्छ ॥

    कि बेटी चाहती है अब

    समय के साथ ही चलना ॥

    वाह!!!
    बहुत सटीक... उसूलों और मान्यताओं के खजाने का बोझ ढ़ोते ढ़ोते तंग आ चुकी हैं बेटियाँ... बस पिता ही ये बात समझ लें और इजाजत दें बेटियों को परिस्थितियों के अनुकूल व्यवहार की...बाकी तो बेटियां सम्भाल लेंगी।
    लाजवाब सृजन
    बहुत बहुत शुभकामनाएं आपको पितृदिवस की

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  16. आपकी सार्थक प्रतिक्रिया ने सृजन को सार्थक कर दिया । बहुत बहुत आभार आपका।

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  17. जिज्ञासा जी मेरी काव्यात्मक प्रतिक्रिया नहीं दीख रही कृपया स्पेम में चेक करिये न।

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    1. श्वेता जी नया फोन लिया है उससे मेरा कमेंट अनाम आ रहा है । सेट नहीं हो रहा है । घर से तो पुराने फोन से कॉमेंट करती हूं। कहीं बाहर होने पर कॉमेंट के इशू हो जा रहे हैं । सारे कॉमेंट स्पैम थे ।
      अब शो हो रहे ।

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  18. कमेंंट मॉडरेशन लगाया है आपने शायद।

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  19. प्रेरित करती सुंदर पंक्तियाँ

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  20. नमस्ते.....
    आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
    आप की ये रचना लिंक की गयी है......
    दिनांक 26/02/2023 को.......
    पांच लिंकों का आनंद पर....
    आप भी अवश्य पधारें....

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  21. आपकी यह रचना दुबारा पढ़ने पर भी उतनी ही हृदयस्पर्शी लगी जितनी की पहली बार । बेटियों को अपने मन की बात पिता से कहने का हौसला आ गया है अब॥ लाजवाब कृति ।

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