कोई कहे अबला कोई कहे सबला
कोई कहें सुंदर नार बलम जी,
अगले जनम की काव कहूँ मैं,
यहि रे जनम गई हार बलम जी ।
तुम जीते थे तुम फिर जीते
आज तलक जीते ही जीते ।
खेल खेलती रही साथ मैं
पल-पल करते सौ युग बीते ॥
अब क्या दूँ इनाम मैं तुमको
दे डारा सब झार बलम जी ॥
एकहि अपने हाथ डेलरिया
वो भी आधी भरी फुलरिया ।
घुमची जैसा फूल सजाया
लाल रंग पे दाग है करिया ॥
किसी रे जनम मैं मोलतोल की
रत्ती रही सुनार बलम जी ॥
बरसत भीगी भीज लुकानी
कंबहुँ करी न आनाकानी ।
चलनी भीतर रोक न पाई
अपना जोगा निथरा पानी ॥
ना घइला मैं ना थी रसरिया
ना कुइयाँ की धार बलम जी ॥
चढ़ सूली झूला मैं झूली
लीला समझी,समझ के फूली
नेह उगा हर पात- पात में
देख सकल संसार ही भूली
वही ओढ़ना वही बिछौना
वहि जीवन सिंगार बलम जी ॥
बाज़ी गई मैं हार बलम जी ॥
**जिज्ञासा सिंह**
कोई कहे अबला कोई कहे सबला
जवाब देंहटाएंकोई कहें सुंदर नार बलम जी,
अगले जनम की काव कहूँ मैं,
यहि रे जनम गई हार बलम जी।
.. सच यही जनम अगर सुख में न बीते तो अगले जनम की बात व्यर्थ है
बहुत अच्छी रचना
आपकी सार्थक प्रतिक्रिया ने रचना को सार्थक कर दिया
हटाएंनमन और वंदन।
नारी जीवन की सच्ची व्यथा कथा
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका आदरणीय दीदी।
हटाएं'चलनी भीतर रोक न पाई, अपना जोगा निथरा पानी'
जवाब देंहटाएंवाह जिज्ञासा, भूत से पूत भले ही मिल जाए पर बलम जी से धोखे के अलावा कुछ भी नहीं मिलने वाला.
बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय सर।
हटाएंप्यार की बाज़ी वही औरत जीत सकती है जिज्ञासा जी जो अपने प्रियतम से हारना जानती है। सुंदर गीत रचा है आपने।
जवाब देंहटाएंहार कर जीते या जीत कर हारे बात वही है कि कटना ख़रबूज़े को ही है ।😄
हटाएंआपका विनम्र आभार जितेन्द्र जी ।
हटाएंतुम जीते थे तुम फिर जीते
जवाब देंहटाएंआज तलक जीते ही जीते ।
खेल खेलती रही साथ मैं
पल-पल करते सौ युग बीते ॥
अब क्या दूँ इनाम मैं तुमको
दे डारा सब झार बलम जी ॥
वाह!!!!
बहुत सटीक...
वही ओढ़ना वही बिछौना
वहि जीवन सिंगार बलम जी
बहुत ही लाजवाब गीत।
इतनी आत्मीयता से गीत को आपने पढ़ा और प्रतिक्रिया दी आपका विनम्र आभार सुधा जी ।
हटाएंखरी खरी बात । कितना ही नारी सशक्तिकरण का दावा किया जाय लेकिन सच यही है कि नारी जीवन समझौतों का नाम है ।
जवाब देंहटाएंजी, सही कहा आपने दीदी । आपकी प्रशंसा मेरा मनोबल बढ़ा जाती है ।आपका हृदयतल से आभार।
हटाएंवाह! बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत खूब। उत्साह से भर गया।
हटाएंआपको मेरा सादर नमन।
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(३०-०९ -२०२२ ) को 'साथ तुम मझधार में मत छोड़ देना' (चर्चा-अंक -४५६८) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
गीत को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार और अभिनंदन प्रिय अनीता जी । सादर शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार ३० सितंबर २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत बहुत आभार श्वेता जी। स्पैम में टिप्पणी जाने से देख नहीं पाई थी।
हटाएंसांसारिकता के साथ साथ आध्यात्मिकता का पुट लिए बहुत सुन्दर गीत सृजन जिज्ञासा जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार मीना जी ।
जवाब देंहटाएंनारी जीवन को आपने बहुत खूब तरीके से काव्य में पिरो दिया👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका रूपा सिंह जी ।
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