कई बार कह चुकी हूँ माँ
मुझे मत समझाओ न !
थक गई हूँ मैं समझ समझ के
समझाया जा रहा है हमें ही सदियों से
जिन्होंने अब तक हमें समझाया है
उनको भी थोड़ा समझाओ न
ये समझना क्या मेरे लिए ही है केवल
या डर जाती हो देखकर उनका भुजबल
सुना सुना के जो समझाते रहे हमें अक्सर
अब उन्हें भी दो चार बातें सुनाओ न
देर हो चुकी है उनको समझाने में पहले ही
भुगतते रहे हम उन्हें पीढ़ी दर पीढ़ी
वो समझते तो औकात में रहते हरदम
अब तो उनकी औकात उन्हें बताओ न
दर्द ऐंड़ी से चोटी तक दिया है फिर भी
सोचकर जाता है रोम रोम सिहर भी
फिर भी क्यों सिखा रही हो, कि वो ही सब कुछ है
उसके आगे पीछे दुम हिलाओ न
वो महान नहीं हैं मेरे लिए समझ लो
अब तो उन्हें एक इंसान की तरह ले लो
चढ़ाती रही हो सिर से आसमाँ तक तुम्हीं उनको
उतारने के लिए अब से हाथ बढ़ाओ न
समझ, पे पूरी तरह था उनका ही हक
वो समझाते रहे हमको मरते दम तक
बूढ़ी हो गई हो अक्ल नही है, ये जुमले हैं उनके
अब तो इन जुमलों से ऊपर उठ जाओ न
कई बार कह चुकी हूँ माँ !
अब मुझे कुछ भी समझाओ न
**जिज्ञासा सिंह**
चित्र साभार गूगल
समझाने और समझने की एक उम्र ही अच्छी होती है, समय के साथ बदलना जरुरी हैं , जिंदगी एक ही ढर्रे से जीने का नाम नहीं
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना
आपकी प्रतिक्रिया एवं प्रशंसा से अभिभूत हूँ, कृपया अपना स्नेह बनाए रखें..आदर सहित जिज्ञासा..!
हटाएंबहुत सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंमनोज जी आपकी प्रशंसनीय टिप्पणी का स्वागत करती हूँ..सादर नमन.. जिज्ञासा..!
हटाएंस्त्रियों को जन्म से विरासत में मिलता है समझने का पाठ; चाहे घर या समाज. बहुत अच्छा और विचारपूर्ण रचना. बधाई.
जवाब देंहटाएंडॉ.जेन्नी शबनम जी, मेरी कविता को समय देकर,आपने अपने विचार रखे जिसका हृदय से स्वागत करती हूँ..प्रशंसनीय टिप्पणी के लिए आपका आभार व्यक्त करती हूँ..।सादर.. नमन.. ।
हटाएंअर्थपूर्ण व नारी शक्ति को उजागर करती रचना, इसी तरह की प्रेरणादायी सृजन की ज़रुरत है ताकि समाज में परिवर्तन की शुरुआत तो कम से कम हो पाए, मानसिक बदलाव ज़रूरी है, जो अबला से सबला की ओर ले जाए - - साधुवाद।
जवाब देंहटाएंआपकी अर्थपूर्ण प्रशंसा से अभिभूत हूँ..इतनी सराहनीय टिप्पणी से हमेशा कुछ अच्छा लिखने की प्रेरणा मिलती है..सादर नमन..।
हटाएंप्रेरक और भावपूर्ण भावाभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंआपकी प्रशंसनीय टिप्पणी को नमन करती हूँ..आपको मेरा सादर अभिवादन..!
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