पड़ोसन के घर में किराए पे लड़की ।
वो रहती है ऊपर सदा खोल खिड़की ।।
वो आई तो झोले में कपड़ा थी लाई,
थे माँ बाप संग में, बहन और भाई ।
किया सब जतन ख़ूब घर को सजाया,
बहुत आगे करनी है उसको पढ़ाई ।।
इसी से शहर के बड़े ढूंढे कॉलेज,
करा दाखिला और ये कमरा दिलाया ।
लगी झाँकने जब मैं उनकी वो खिड़की,
तो लड़की की माँ ने मुझे ये बताया ।।
पढ़ेगी, लिखेगी ये अफसर बनेगी,
हमारे भी दिन यूँ बहुर जाएँगे जी ।
हटेगी गरीबी, छोड़ गाँव अपना,
शहर में ही आकर के बस जाएँगे ही ।।
जरा देखिएगा ये लाडो है मेरी,
आठ भाई बहनों में सबसे बड़ी ये ।
खुशी हमको होगी उसी दिन बहन जी,
ये होगी जो अपने ही पैरों खड़ी ये ।।
यही सोचकर मैंने कर्जा उठाया,
कि बड़की पढ़ेगी तो सातों पढ़ेंगे ।
जो सातों पढ़ेंगे तो निश्चित है एकदिन,
कि माँ बाप के दिन भी निश्चित फिरेंगे ।।
सुनी बात माँ की और मैने भी हाँ में,
हिलाया जो सिर तो वो अब तक है दुखता ।।
गए ज्यों ही माँ बाप बेटी के घर से,
तो पढ़ने में जी उसका कुछ दिन ही लगता ।।
कि दिन बीस बीते महीना ही बीता,
औ बेटी ने मित्रों की फौज बनाई ।
लगी घूमने वो शहर कोना कोना,
है डीपी में फोटो की बौछार आई ।।
बगल में मेरे ख़ूब हलचल मची है,
औ बेटी के पाँव जमी पे नहीं हैं ।
पड़ोसन तो रहतीं हैं दूजे शहर में,
यहाँ शाम को पार्टी चल रही है ।।
मेरे मन में छाया है माँ का वो चेहरा,
औ उम्मीद धुँधली हुई दिख रही है ।
थी बंदिश में बेटी की जो सारी ख्वाहिश,
खुले पंख से आसमाँ उड़ रही है ।।
पढ़ेगी वो क्या ? ये शहर के उजाले,
चकाचौंध उसको किए जा रहे हैं ।
करज में हैं डूबे जो माँ बाप इसके,
मुझे भी परेशाँ किए जा रहे हैं ।।
यही मैं नियत देखती आ रही हूँ,
कि गाँवों की प्रतिभा शहर ज्यों ही आती ।
ये झिलमिल सी दुनिया औ रंगी दीवारें,
उसे नित भरम में डुबोती है जाती ।।
अतः ऐसे परिवार से है निवेदन,
कि बच्चों को अपने शहर यूँ न भेजें ।
है जो कुछ भी सुविधा उसी के ही द्वारा,
भविष्य संवारें औ आज सहेजें ।।
वरन एक दिन न तो ये बच्चे बनेंगे,
न जीवन प्रगति का ही आधार होगा ।
बिगड़ जाएगी इस जमाने में संतति,
जो बच्चे के संग में न परिवार होगा।।
**जिज्ञासा सिंह**
कि दिन बीस बीते महीना ही बीता,
जवाब देंहटाएंऔ बेटी ने मित्रों की फौज बनाई ।
लगी घूमने वो शहर कोना कोना,
है डीपी में फोटो की बौछार आई ।।
बगल में मेरे ख़ूब हलचल मची है,
औ बेटी के पाँव जमी पे नहीं हैं ।
पड़ोसन तो रहतीं हैं दूजे शहर में,
यहाँ शाम को पार्टी चल रही है ।।
ऐसी लड़कियां खुद का जीवन तो फिर बात करते हैं पर अपने साथ बहुत सी लड़कियों की भी जिंदगी बर्बाद करती है,बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिन लोगों को अपने सपने पूरा करने के लिए आजादी मिलती है वे अपनी आजादी का गलत फायदा उठाती है जोकि दूसरी लड़कियों के लिए चारदीवारी बनती है! छूट मिली है तो उसका सही फायदा उठाएं जिससे बाकी लड़कियों को भी मौका मिल सके! इन लड़कियों की वजह से बाकी लड़कियों का सपना डायरी में ही सिमट कर रह जाता है बाहर निकलने की हिम्मत ना कर पाता है! और अभिभावक अपने बच्चों पर चाह कर भी विश्वास ना कर पाते हैं,
मैं कुछ लोगों को जानती हूं जो कुछ ऐसा ही कर रही है शहर की चकाचौंध भरी दुनिया में कुछ इस तरह अंधी हो गई हैं कि सही और गलत में अंतर नहीं कर पा रही हैं कोई शादी ना करके लिविंग रिलेशनशिप में रहना चाहती हैं तो कोई कुछ और ही करना चाहती हैं और अगर कोई कुछ कहता है तो बोलती है हम खुले विचार के है,खुले विचार होने का मतलब यह नहीं होता कि गलत काम करो उसको खुले विचार होने का हवाला दे दो!
खैर!
हकीकत को बयां करती बहुत ही बेहतरीन और शानदार रचना
बहुत बढ़िया प्रिय मनीषा। बहुत ही अच्छे ढंग से रचना में व्याप्त वस्तु-स्थिति को खोलकर रख दिया।👌👌 हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं ❤️❤️🌷🌷
हटाएंप्रिय मनीषा, करीब दस वर्षों से कुछ ऐसे ही दृश्य अक्सर अपने आसपास देखती हूं, कई बार तो जबरदस्ती समझाने की कोशिश भी की है, पर वही तुमने जो लिखा, ऐसे बच्चे समझना ही नहीं चाहते जिसका परिणाम कई बार बड़ा ही बुरा होता है, आज ही यहां इसी तरह की लड़कियों का वीडियो वायरल हो रहा शराब के नशे में बीच सड़क पर आपस में झगड़ करती हुईं ।.. अंतरात्मा दुखती है,इनकी दुर्दशा देखकर । ये रचना आंखों देखा महसूस किया अनुभव है, ईश्वर इन्हें बुद्धि दे ।
हटाएंतुम्हें मेरा बहुत सारा स्नेह,तुम्हारी समझ निरंतर बढ़े जो कि सृजनशीलता का आधार होती है,और नित नवीन सृजन करो मेरी हार्दिक शुभकामनाएं ।
एक बेहतरीन रचना के लिए बधाई
जवाब देंहटाएंआपका हृदयतल से आभार और अभिनंदन ।
हटाएंप्रिय जिज्ञासा जी, बहुत ही यथार्थवादी काव्य चित्र है। आजकल के बच्चे गांव से शहर में, शहर से दूसरे बड़े शहर में तो बड़े शहर से विदेश की ओर लपकते जीवन की दिशा गंवा रहे हैं। उनके इस तरह के लक्षण सच में ही जरूरतमंदों के पथ में कांटे बिछा देते हैं। क्योंकि उनके दूषित व्यवहार के चलते दूसरे माता -पिता अपने बच्चों विशेषकर बेटियों को बाहर भेजते दर कतराते हैं। ऐसी स्थितियों से अनगिनत मां बाप दो चार हो रहे हैं। यथार्थवादी सृजन के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं 🌷🌷❤️❤️
जवाब देंहटाएंरचना की समीक्षा करती आपकी ये अनोखी टिप्पणी ने इस यथार्थ पर मुहर लगा दी, सच रेणु जी बच्चे खूब पढ़ें उन्नति करें परंतु अच्छे होशियार बच्चे भी कभी कभी अपनी जमीन देखे बिना हवा में उड़ने लगते हैं और धड़ाम से गिर पड़ते हैं ।
जवाब देंहटाएंउसी अनुभव को शब्दों में पिरोने की कोशिश की है । आपकी प्रशंसा को हार्दिक नमन एवम वंदन ।
जिज्ञासा, एक लड्की अगर घर से बाहर निकल कर अपने लक्ष्य से भटक गयी तो इतनी व्याकुलता?
जवाब देंहटाएंऐसी गुमराह लड़कियों से सौ गुने लड़के अपने लक्ष्य से भटकते हैं और माँ-बाप की गाढ़े पसीने की कमाई बर्बाद करते हैं.
आदरणीय सर, जैसे लड़की ,वैसे ही लड़के,किसी के भी भटकने से समाज और परिवार का पतन होता है, रही बात लड़कों की, तो वे तो इसे अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं ।
जवाब देंहटाएंअसल में मैं आज भी गांव से बहुत करीब से जुड़ी हूं और वहां के हर स्थिति से रूबरू होती हूं, एक किसान किस तरह, किन परिस्थितियों में,अपने समाज से कितना लड़के,अपनी बेटी को, जो कि गांव के स्तर पर अव्वल है, होशियार है, बाहर पढ़ने भेजता है, और जब बेटी के साथ कोई हादसा होता है, तो उसकी विषम और दर्द भरी परिस्थिति को मैंने महसूस किया वही इस रचना का आधार है, आदरणीय सर, ये मेरा आज का अनुभव नहीं । कई सालो का है, गांव मेरे मन में बसता है । और वहां की हर परिस्थिति को बखूबी जानती हूं, लड़कों के ऊपर लिखी एक रचना आप के अवलोकनार्थ लिख रही हूं,जो समाज की एक कटु सच्चाई है,परंतु लड़कों को लेकर मेरे मन में लड़कियों जैसी व्याकुलता नहीं । ये सच है....
रूप बदलते बेटे
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रात बेटा आया सिरहाने बैठा
माथे का पसीना पोंछा ।
मासूम नज़रों से मां को देखा
और बड़ी देर तक कुछ सोचा ।।
बोला मुझे माफ़ कर दो माँ
अब ऐसा नहीं होगा दोबारा ।
तुम तो जानती हो मेरी ग़लतियाँ
मेरा कच्चा चिट्ठा सारा ।।
मैं झगड़ता हूँ सदा से
और माफ करती तुम मुझे
बड़ी मुश्किल में हूं मैं आज
तुम्हारी बेरुखी से ।।
बेटे ने कहा मासूमियत से
माँ को तरस आया ।
उठी, जल्दी से ख़ुश होकर
सजाकर पेट भर खाना खिलाया ।।
बोली इस तरह नशे में
दंगा मत करना आइंदा ।
नहीं तो मुझे नहीं पाओगे तुम
अब इस दुनिया में ज़िंदा ।।
बेटा सुनता रहा माँ की
नींद में डूबी आवाज़ ।
और बदलता रहा
पल पल अपना अन्दाज़ ।।
धैर्य रख कर माँ के
सोने का किया इंतज़ार ।
बंद हुईं आँखें जैसे उसकी
चुराकर गहने हुआ फरार ।।
दो दिन बाद लौट कर
आया नशे में धुत्त ।
माँ अचम्भित है आश्चर्यचकित है
दोहरा रूप देखकर बेटे का अद्भुत ।।
जिज्ञासा सिंह
गाँव की तरह ही यदि जिसे शहरी हवा लग गई, फिर उसका इलाज समझो मुश्किल है
जवाब देंहटाएंमाँ-बाप की उम्मीदों पर शहर आकर कई गरीब घरों के बच्चे पानी फेरते हैं, तो सच में दिल बहुत दुःखता है,
कविता जी,रचना का मर्म समझने के लिए आपका हार्दिक आभार एवम अभिनंदन ।
हटाएंआपकी रचना अच्छी है। सब पर तो नहीं पर कुछ (लड़कों और लड़कियों) पर लागू होती है। मैं स्वयं 1988 में अपने गांव (सांभर झील) से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए कलकत्ता चला गया था जहाँ तीन वर्ष से अधिक समय तक मैं एकाकी ही रहा। वस्तुतः सब कुछ उस कच्ची उम्र के लड़के या लड़की के संस्कारों, विवेक एवं इच्छा-शक्ति पर निर्भर करता है। यदि इनकी नींव दृढ़ हो तो भटक कर भी वह पुनः उचित पथ पर आ सकता (या सकती) है। मोहनदास गांधी भी उच्च शिक्षा प्राप्त करने हेतु विदेश गए थे तथा उनकी माता ने उन्हें सदा सन्मार्ग पर रखने हेतु कतिपय शपथ दिलवाईं थीं। वे भी भटके थे किन्तु अंततोगत्वा अपने उचित पथ पर पुनः आकर वांछित गंतव्य की ओर बढ़े भी, उस तक पहुँचे भी। तथापि आपके विचार समुचित हैं एवं आपका यह प्रयास प्रशंसनीय है जो यदि किसी एक भी व्यक्ति अथवा परिवार का पथ-प्रदर्शन कर दे तो असीमित रूप से सार्थक सिद्ध होगा।
जवाब देंहटाएंआपकी टिप्पणी का मेरे लिए एक विशेष महत्व है आदरणीय जितेन्द्र जी, हमारे समाज में आज भी शिक्षा के मामले में ग्रामीण स्तर पर कोई अच्छा और प्रशंसनीय कार्य नहीं हुआ है, और अगर उस माहौल से निकलकर येन केन प्रकारेण कोई गरीब बच्चा उच्च स्तर की पढ़ाई करने जाय तो कुछ तो अच्छा करे, यही हर इंसान इंसान चाहता है ।... कविता पर सकारात्मक टिप्पणी के लिए आपका हार्दिक आभार एवम अभिनंदन । आपको मेरा सादर नमन ।
हटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार मनोज जी ।
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(२९-१०-२०२१) को
'चाँद और इश्क़'(चर्चा अंक-४२३१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
अनीता जी,आपका बहुत बहुत आभार और अभिनंदन । मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए आपको हार्दिक धन्यवाद, शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह ।
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार २९ अक्टूबर २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
श्वेता जी ब्लॉग पर आपका हार्दिक अभिनंदन करती हूं, रचना का चयन करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार । शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह ।
जवाब देंहटाएंसामयिक चिन्तन
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय दीदी 🙏💐
हटाएंजिज्ञासा दी, जीन बच्चों को पढ़ लिख कर कुछ बनना होता है वे भटकते नही है। लेकिन कुछ बच्चे शहरी चकाचौंध के आगे फिसल कर अपना और अपने परिवार का जीवन नरक बना देते है। बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार ज्योति जी 🙏💐
जवाब देंहटाएंसही कहा जिज्ञासा जी आपने उन माँ बाप के लिए दिल बहुत दुखता है जो बड़ी उम्मीद के साथ अपना सब कुछ दाँव पर लगा अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य की कामना लिए उन्हें शहर में विश्वास के साथ छोड़ते हैं और बच्चे अपनी नासमझी के कारण गलत राह पकड़ लेते हैं ..हो सकता है कल सुधर भी जायें पर माँ बाप के विश्वास को तो तोड़ ही चुके न। अक्सर सबसे बड़ी संतान जब इस तरह विश्वास तोड़ती है तो बाकी संतानों के रास्ते भी बंद हो जाते हैं फिर माँ बाप दूसरे बच्चों को भी अवसर नही देते।अब कर भी क्या सकते है ऐसा भी नहीं है कि लोग इन बातों से अनभिज्ञ हों.....।आजकल बहुत ही कॉमन हो चुके ये किस्से। बस माँ बाप ये याद रखें कि चाहे बच्चा कितना भी समझदार और बुद्धिमान है पर है तो बच्चा न...कोशिश करें कि उसे अकेले न छोड़ें। तो शायद वह इस तरह न भटके।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सारगर्भित और संवेदनशील विषय पर सार्थक और संदेशप्रद सृजन।
बहुत बहुत बधाई आपको।
बहुत बहुत आभार सुधा जी, आपकी प्रशंसनीय और सारगर्भित प्रतिक्रिया ने कविता का मान बढ़ा दिया,आपको मेरा सादर नमन एवम वंदन । धनतेरस और दीवाली पर आपको मेरी हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई
जवाब देंहटाएंजिज्ञासा जी कुछ घटनाएं हमें सोचने को विवश करती है और कवि मन अपने दर्द को उद्गार देता है जिसमें पीड़ा और प्रेरणा दोनों होती है आपके इस अभिव्यक्ति जैसा ।
जवाब देंहटाएंसार्थक काव्य सृजन ।
मेरे ख्याल से इसका कारण सुषुप्त महत्वाकांक्षाएं हैं, जो चकाचौंध से उच्छृंखलता की सीमाएं लांघ ती है, आज गांवों में इतना टी वी देखा जाता है उनमें उल्टे सीधे सीरियल, शहरी जीवन के आजाद ख्याल, मस्ती, तफ़रीह अपरिपक्व मस्तिष्क को अपने शिकंजे में ले लेती है , फिर जैसे ही उन्हें आज़ादी मिलती है और साथ ही ग़लत संगत जो उन्हें दलदल में धकेल देती है साथ ही छोटे भाई बहनों की उन्नति का रास्ता बंद कर देते हैं माता पिता का विश्वास और इज्जत सब धूल में मिल जाती है । साथ ही उनका भविष्य भी मटियामेट हो जाता है। जिसके कितने दुष्परिणाम देखने को मिलते हैं।
सारगर्भित और संवेदनशील विषय सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार । संजय जी।
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