कलम दवात हुए छू मंतर
तख़्ती बुतका ग़ायब ।
कम्प्यूटर का चला जमाना
पढ़े लिखेंगे सब ॥
पट्टी टाट पालथी उकड़ू
दिखता योगा डे पर
चले गुरु जी पानी भरने
हर उपलब्धि नेट पर
यूटूब पर पापड़ रेसिपी
अम्मा ढूँढ रहीं अब ॥
बड़े-बड़े विद्वान मिलेंगे
फ्री में ट्विटर कू पर
गाज गिर गई बड़की ज्ञानी
पड़ी लिखी फूफू पर
ऐसे बेग़ैरत मौसम में
कहाँ मिलेंगे रब ॥
अरे हमारे भी कुछ दिन थे
सुन लो बेटा बेटी ।
नौ मन तेल मिला न नाची
न मैं रूठ के लेटी ॥
देखूँ बहतीं दूध की नदियाँ
तेरी ख़ातिर भर टब ॥
**जिज्ञासा सिंह**
भाव अच्छे हैं आपकी रचना में, बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय।
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शनिवार (16-07-2022) को चर्चा मंच "दिल बहकने लगा आज ज़ज़्बात में" (चर्चा अंक-4492) पर भी होगी!
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय शास्त्री जी । रचना के चयन के लिए आपका हार्दिक आभार और अभिनंदन। मेरी हार्दिक शुभकामनाएं।
हटाएंवाक़ई अब गूगल बाबा का ज़माना है, रोचकता पूर्ण सृजन
जवाब देंहटाएंआपकी सार्थक प्रतिक्रिया को मेरा नमन और वंदन ।
हटाएंवाह !! बहुत ख़ूब !! कल और आज के दैनिक परिवर्तन को बहुत सुन्दर और सरस रूप में ढाला है आपने ! सृजन सृजन हेतु बहुत बहुत बधाई जिज्ञासा जी !
जवाब देंहटाएंरचना को सार्थक करती प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार।
हटाएंअब तो गूगल न जाने क्या क्या समेटे रखता अपने में ।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका दीदी ।
जवाब देंहटाएंसमय में आते परिवर्तन का दैनिक जीवन पर असर रोचकता सा दर्शाया है आपने जिज्ञासा जी।
जवाब देंहटाएंअभिनव सृजन।
बहुत बहुत आभार आपका।
हटाएंबड़े-बड़े विद्वान मिलेंगे
जवाब देंहटाएंफ्री में ट्विटर कू पर
गाज गिर गई बड़की ज्ञानी
पड़ी लिखी फूफू पर
सही कहा अब अपने बड़ों की न सुनकर सब नैट पर निर्भर हो रखे।
बहुत ही सुंदर रोचक
लाजवाब सृजन
बहुत बहुत आभार आपका।
हटाएंअब यही हालात हो गए हैं बस ,सुंदर रचना लिखी
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार और अभिनंदन।
हटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आपकी उपस्थिति का अतीव हर्ष है । नमन और वंदन।
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