शशि धवल निहारे अम्बर में


शील सुशील मनोहर छवि
संग आजु चली सुकुमारि कली ।
उर प्रेम बसे, रहि रहि हुलसे,
मन मीत पिया की पियारि गली ।।

सुर ताल सजे संगीत बजे
रग रग हरसे मन गुंजन में
बिजुरी चमके अमरित बरसे
निशिगंध सरोरुह कुंजन में ।।

सजती गलियाँ, सजते द्वारा
फूलन की बंदनवार चली 
डोली पहुँची प्रिय मन आँगन
पग पायल झन झनकार चली।।

है नेह संजोये भर अँजुरी
शशि धवल निहारे अम्बर में
सौभाग्य अटल अनुराग गुँथे
हित प्रेम सजाए निज उर में

रविकिरन सजा निज माँग भरी
कजरा चुड़ियाँ गोदनार चली
भर कलश मयंक के द्वार खड़ी
अविरल बह गंग की धार चली ॥

**जिज्ञासा सिंह**

24 टिप्‍पणियां:

  1. वाह जिज्ञासा, गीत-संगीत की तो तुमने गंगा ही बहा दी !
    इस गीत को मैं तुम्हारी सर्वश्रेष्ठ रचनाओं में सम्मिलित करना चाहूँगा.

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    1. जी, बहुत बहुत आभार।
      आप शिक्षाविद् है, आपकी लेखनी से निकली ये प्रतिक्रिया मेरी धरोहर रहेगी । आपको सादर अभिवादन।

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  2. वाह ! प्रीत और श्रंगार की सुंदर छटा !!

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  3. बहुत सुंदर प्रेमाभिव्यक्ति।

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  4. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १४ अक्टूबर २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    1. पांच लिंकों में रचना का चयन हमेशा खुशी दे जाता है । आभार सखी ।

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  5. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार 14 अक्टूबर 2022 को 'मंज़र वही पर रौनक़े-महफ़िल नहीं है' (चर्चा अंक 4581 ) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

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  6. लाज़बाब प्रस्तुति

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  7. बहुत सुंदर भावों से सुसज्जित रचना । आनंद आ गया ।

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  8. वाह!!!
    बहुत ही सुन्दर मनमोहक
    लाजवाब सृजन।

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  9. अति सुन्दर। शब्दो का चयन अति उत्तम है!

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  10. प्रिय जिज्ञासा जी,शीर्षक जितना प्यारा है उतनी ही समग्र रचना मनमोहक है।इतनी मनोहर छवि को निहार शशि धवल भी भौचक सा ना हो तो क्या करे? सुकोमल भावों से सजी रचना के लिए बधाई और शुभकामनाएं प्रिये।

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  11. सुन्दर शब्दो का समावेश ...बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

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  12. बाल गीत लिखना, कठिन काम है। आपने सुंदर शब्दों में लिखा।

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